सहजि सहजि गुन रमैं : विमलेश त्रिपाठी








विमलेश त्रिपाठी कविता और कहानी दोनों में समान रूप से सक्रिय हैं.  उनकी कविताओं का एक संग्रह, हम बचे रहेंगे प्रकाशित है. उनकी कविताओं  में वरिष्ठ कवि केदारनाथ सिंह ने स्थानीयता की पहचान की है- 'किसी आंचलिक अर्थ में नहीं- बल्कि अच्छी कविता के सहज गुण धर्म के रूप में स्थानीयता.' 
इधर की एक जैसे चेहरे-मोहरे वाली कविताओं के  बरक्स बहुत सी ऐसी कविताएँ भी  हैं जिनका अपना देश-काल है. जिन्हें अलग- अलग जगहों से अपने में अनूठे कवि रच रहे हैं. विमलेश उन्ही में से एक है.  इन कविताओं में सादगी लिए परिपक्वता है, छोटे - बड़े संघर्ष दर्ज़ हैं और शब्दों में विश्वास की आखरी उम्मीद है. समकाल का  अर्थविस्तार देती काव्य संवेदना आपको यहाँ मिलेगी. 






क्या करोगे मेरा  ( यह कविता मुक्तिबोध की स्मृति में)

रात में बेतरह बोल रही टिटहरी की आवाज हूं
एक तान हूं अपनी उठान में लड़खड़ा गया-सा

एक शाम हूं उदास गली की
जिसका दरवाजा एक असंभव इंतजार में है सदियों से

राह पर अपने जितना ही बड़ा जिद लिए खड़ा
एक शिशु हूं जिसे एक खिलौना चाहिए 
जो बैटरी लगाने पर भी चलता-बोलता 
और हंसता नहीं है

विवशता हूं एक गरीब पिता की
एक मां का खुरदरा हाथ हूं

दूर किसी गांव में
एक किसान की नीली पड़ती देह हूं
जिसके माथे पर खुदा है एक देश 
जिसका नाम हिन्दुस्तान है

क्या करोगे मेरा
क्या कहोगे मुझे

हूं मैं 
कविता में एक निरर्थक शब्द हूं
चुभता तुम्हारी उनकी सबकी आंख में
देश की सबसे शक्तिशाली और इस तरह
एक सुंदर महिला के चित्र पर 
बोकर दी गई सियाही हूं

तो क्या सिर्फ यह कहने के लिए ही 
मेरा जन्म हुआ है
कंटीली झाड़ियों के इस जंगल में

चलो कह रहा हूं कि मेरा नाम विमलेश त्रिपाठी 
वल्द काशीनाथ त्रिपाठी है
और मेरे होने 
और न होने से कोई फर्क नहीं पड़ना तुम्हें

फिर भी कहूंगा कि
फिलहाल तुम्हारे सारे झूठ के बरक्श
जो सच की एक दीवार खड़ी है
उस दीवार की एक-एक इंट अगर कविता है

तो जैसा भी हूं 
कवि हूं मैं

सुनो, मेरे साथ करोड़ों आवाजों की तरंग से
तुम्हारी तिलस्मि दुनिया की दीवारें कांप रही हैं

और बहुत दूर किसी दुनिया में बैठा एक कवि
बीड़ी के सुट्टे मारता
तुम्हारी बेवशी पर मुस्कुरा रहा है...
  
  
दरअसल

हम गये अगर दूर
और फिर कभी लौटकर नहीं आय़े
तो यह कारण नहीं 
कि अपने किसी सच से घबराकर हम गये

कि अपने सच को पराजित
नहीं देखना था हमें
कि हमारा जाना उस सच को
जिंदा रखने के लिए था बेहद जरूरी

दरअसल हम सच और सच के दो पाट थे
हमारे बीच झूठ की
एक गहरी खाई थी

और आखिर आखिर में 
हमारे सच के सीने में लगा 
जहर भरा एक ही तीर

दरअसल वह एक ऐसा समय था
जिसमें बाजार की सांस चलती थी

हम एक ऐसे समय में 
यकीन की एक चिडिया सीने में लिए घर से निकले थे
जब यकीन शब्द बेमानी हो चुका था

यकीनन वह प्यार का नहीं
बाजार का समय था

दरअसल उस एक समय में ही
हमने एक दूसरे को चूमा था

और पूरी उम्र 
अंधेर में छुप-छुप कर रोते रहे थे.


एक शब्द हम एक शब्द तुम


शब्दों के महीन धागे हैं 
हमारे संबंध

कई-कई शब्दों के रेशे-से गुंथे
साबुत खड़े हम 
एक शब्द के ही भीतर

एक शब्द हूं मैं
एक शब्द हो तुम

और इस तरह साथ मिलकर
एक भाषा हैं हम

एक ऐसी भाषा 
जिसमें एक दिन हमें 
एक महाकाव्य लिखना है .


अतवार नहीं


आंगन में आज 
कनेर के दो पीले फूल खिले हैं

दो दिन पहले 
तुम लौटी हो इक्किस की उम्र में
मुझे साढ़े इक्किस की ओर लौटाती

समय को एक बार फिर 
हमने मिलकर हराया है

सुनो
इस दिन को मैने
अपनी कविता की डायरी में
अतवार नहीं
प्यार लिखा है....


उस दिन


कभी पुरानी किताब की जिल्द में 
डर से छुपाई हुई 
एक कविता मिल जाती 
और अचानक मेरी उम्र 
सत्रह वर्ष की हो जाती

उस दिन मेरे एक हाथ में रात
और एक हाथ में दिन होता 

उस दिन मैं देर दिन तक हंसता
उस दिन मैं देर रात तक रोता



एक शब्द लिखने के पहले


हर दिन 
एक शब्द लिखने के पहले
चलता हूं एक कदम

सोचता हूं
इस तरह एक दिन 
पहुंच जाऊंगा

जहां पहुंचे नहीं हैं अब तक
मेरे शब्द



तेरी ज़ुल्फों के आर पार कहीं इक दिल अजनबी सा रहता है

लम्हा लम्हा जो मिला था कि हादिसों जैसा
वो वक्त साथ मेरे हमनशीं सा रहता है

ये जो फैला है हवा में धुंआ-धुंआ जैसा
रात भर साथ मेरे जिंदगी सा रहता है

डूब कर जिसमें कभी मुझको फ़ना होना था
वो दरिया मुझमें कही तिष्नगी सा रहता है ।।

::

अजब है कश्मकश ये जिंदगी कि क्या करिए
हम बचा लें जरा उल्फ़त यही दुआ करिए
हर गली शहर अब महरूम है फ़रिश्तों से
ये नया दौर है बंदों को ही खुदा करिए
जानता कौन है कैसा है कि अंबर का जलवा
जो जमीं है मिली उसी को आसमां करिए ।।


कविता से लंबी उदासी

कविताओं से बहुत लंबी है उदासी
यह समय की सबसे बड़ी उदासी है
जो मेरे चेहरे पर कहीं से उड़ती हुई चली आई है

मैं समय का सबसे कम जादुई कवि हूँ

मेरे पास शब्दों की जगह
एक किसान पिता की भूखी आंत है
बहन की सूनी मांग है
कपनी से निकाल दिया गया मेरा बेरोजगार भाई है
राख की ढेर से कुछ गरनी उधेड़ती
मां की सूजी हुई आँखें हैं
मैं जहाँ बैठकर लिखता हूँ कविताएँ
वहाँ तक अन्न की सुरीली गंध नहीं पहुंचती

यह मार्च के शुरूआती दिनों की उदासी है
जो मेरी कविताओं पर सूखे पत्ते की तरह झर रही है
जबकि हरे रंग हमारी जिंदगी से गायब होते जा रहे हैं
और चमचमाती रंगीनियों के शोर से
होने लगा है नादान शिशुओं का मनोरंजन
संसद में वहस करने लगे हैं हत्यारे

क्या मुझे कविता के शुरू में इतिहास से आती
लालटेनों की मद्धिम रोशनियों को याद करना चाहिए
मेरी चेतना को झंकझोरती
खेतों की लंबी पगडंडियों के लिए
मेरी कविता में कितनी जगह है

कविता में कितनी बार दुहराऊँ
कि जनाब हम चले तो थे पहुँचने को एक ऐसी जगह
जहाँ आसमान की ऊँचाई हमारे खपरैल के बराबर हो
और पहुँच गए एक ऐसे पाताल में
जहाँ से आसमान को देखना तक असंभव

(
वहाँ कितनी उदासी होगी
जहाँ लोग शिशुओं को चित्र बनाकर
समझाते होंगे आसमान की परिभाषा
तोरों को मान लिया गया होगा एक विलुप्त प्रजाति)

कविता में जितनी बार लिखता हूँ आसमान
उतनी ही बार टपकते हैं माँ के आँसू
उतनी ही बार पिता की आंत रोटी-रोटी चिल्लाती है
जितने समय में लिखता हूँ एक शब्द
उससे कम समय में
मेरा बेरोजगार भाई आत्महत्या कर लेता है
उससे भी कम समय में
बहन औरत से धर्मशाला में तब्दील हो जाती है

क्या करूँ कि कविता से लंबी है समय की उदासी
और मैं हूँ समय का सबसे कम जादुई कवि
क्या आप मुझे क्षमा कर सकेंगे ??
______________________________________________
विमलेश त्रिपाठी की कहानी आप यहाँ पढ़ सकते हैं.
bimleshm2001@yahoo.com

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  1. Bahut hi sarthak kavitaayen jo saksham hai antarman ki gahraaeyon ko chhune me..ek vichaar rupantarit karne me..jo nishchay hi parivartit kar sakta hai manav hriday ko

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  2. वर्तमान हालात /उस में अतीत की ...गठरी भी ...साथ साथ ले कर चलती अब तक की ...दर्द भरी हकीकत कहानी को बहुत मर्म से संजोते शब्द है .अपनी बेवशी पर फूट-फूट कर रोना चाहते है ...पर सहय्द वो कोना नहीं मिल रहा जहां पर इस दर्द को निकाला जाये ...अन्दर ही अन्दर फुटती रुलाई ......ये उस तरह का दर्द है जो जो जीवन में कर्ण ने भुगता है ता - जिन्दगी ..देश के हालत की स्याह हकीकत तरक्की और विकास के तमाम दावों की पोल खोलते नज़र आती अभिव्यक्ति .....मार्मिक Nirmal Paneri

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  3. kya karu ki kavita se lambi he samay ki udasi...kitne yaksa prashn chor jati ye samay ki aantheen udasi....

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  4. "कविता में कितनी बार दोहराऊं/ कि जनाब जब हम चले थे पहुंचने को एक ऐसी जगह
    जहां आसमान की ऊंचाई हमारे खपरैल के बराबर हो / और पहुंच गये एक ऐसे पाताल में
    जहां से आसमान को देखना तक असंभव " एक निर्मम समय से जूझते इन्‍सान के राग-विराग और जिजीविषा को व्‍यक्‍त करती इन अनूठी कविताओं के लिए कवि बिमलेश त्रिपाठी और समालोचन को हार्दिक शुभकामनाएं।

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  5. विमलेश की संवेदनाओं का संसार इतना मौलिक और लौकिक है कि कई बार आश्‍चर्य होता है, कोलकाता जैसे महानगर में रहकर इतनी सघन संवेदनाओं को बचाये रखना, जिसकी परिधि में पूरा देशकाल आ जाता है। बनावटी और उलझी हुई कविताओं के इस भयावह दौर में विमलेश को पढ़ना अपने ही संवेदन संसार को समृद्ध करना है। उनकी सर्जनात्‍मक बेचैनी पाठक के भीतर भी इस कदर विचलन पैदा कर देती है कि सच में हिला देती है... इस पीढ़ी के कवियों में विमलेश मुझे अत्‍यंत प्रिय है और मैं बहुत आशावान हूं विमलेश के प्रति...

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  6. bimlesh kee samvednayen mann ko jhakjhorti hain.. bahut sundar likhi hain sabhi kavitayen..

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  7. हर बार आपको पढ़ना एक सुखद अनुभव ही होता है .......बहुत कुछ नया सीखने को मिलता है .. मुक्तिबोध की स्मृति में कविता लिखकर आपने कवि धर्म का मान बढाया है ...इसके लिए आभार . इसीतरह आप आगे बढते रहिये और हम यूँही आपसे प्रेरणा लेते रहे .....शुभकामनाओं के साथ आपका अनुज -नित्यानंद गायेन

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  8. Kavita se lambi udasi aur kya karoge mera bahut achhi kavitayen hain jo der tak man me bani rahti hain. bahut badhai

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  9. विमलेश के पास लोक जीवन की संवेदना और पूंजी है , और उसे कविता में ढालने की कला भी ..| जाहिर है एक साहित्यकार के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण होता है , कि वह समाज के कितने बड़े दायरे से परिचित है ..| वह जिनके बारे में लिख रहा है , क्या उसे ठीक ठीक जानता भी है या नहीं ...| विमलेश की यही पूंजी उनकी कविताओं को अर्थवान बना देती है ..|..पहली और आखिरी कविता शायद इसीलिए मुझे अधिक आकर्षित कर रही है , क्योकि यही विमलेश की मजबूत जमीन है .|..हाँ ......बाकी कविताये भी ठीक हैं ....बहुत बधाई उन्हें...

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  10. sabhi kavitayen bahut hin achhi aur udeshyapurna hai, aur apne andar ek gahrai liye hue hai soch ki satah par bikhri hui kuchh hasin shabd apne aap me ek mahan aur prabhav samaye hue hai...................apko dhanyawad hame aisi kavitayen dene ke liye....

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  11. kavita se lambi udaasi........ bahut-bahut sundar !!
    i guess, its THE BEST out here........... "kavita main jitani baar mai likhta hun aasamaan, utani hi baar................"kitani baar perhun !! antar nikal aapne panne per rakh diya hai...... BAHUT SUNDAR !!!!!!!!!!

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  12. विमलेश जी की कविताये सुंदर और एकदम समंजित ठहरी हुई , दूर तक प्यार से देखती एक अनुशासित व्यथा , वीनित ,शीलता और सौंम्यता की दृष्टि से भरी कवितायें हर जगह एक जैसी प्यारी मिठास लिये होती है वह अदभुत है और संवेदना के साथ जीने की शक्ति भी देती है और मुझ जैसे व्यथा पीडित पाठक को सचमुच विभोर कर देने में सक्षम हो जाती है आपका बहुत बहुत आभार मेरी प्रार्थना है ईश्वर आपको दीर्धायु एवं सदा एक सार्थक प्यारा अपना सा कवि बनाये रखे धन्यवाद

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  13. जैसा अरुण ने कहा विमलेश की कविताएँ समकाल का अर्थविस्तार देती कविताएँ हैं . अपने देश काल को दर्ज करती परिपक्व रचनाएँ .. बधाई विमलेश .

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  14. sunder kavitayen.....vimlesh ki kavitayen bahut bariki se apni samvednaon ko vyakt karati hain....badhai

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  15. विमलेष जी आप बड़ी अच्छी एवं गंभीर कविताएं लिख रहे हैं बधाई

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  16. vimalesh ke yaha kavita hee jeevan hai jeeven hee kavita, puri trah kavita me virajmaan ho kar likhe wale kavi hai vimalesh

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  17. gm vimlesh j mere dost sadosh or manoj aksar aapka zikr karte hain ,,main bhi usi koshukriya ,,kya baat hai ,,Us deewar ki agar ek ek ient hai ,,to main jaisa bhi hun kavi hun ,,bahut sunder abhivyaktioche se hun ,,abhi dekhta hub siri dusri bi achhi hai vimlesh ji,,Darasal hum sach or sach ke do paat the,,,.. vimlesh ji sunder chitran hai apne bhiter ke krandan ,,bahut asteek hain chhoti chhoti bhavpoorn panktiyaan ,,or aap jo keh rahe hai thik thik hum tak pahuch bhi raha hai ,,..Shayad ek srajjan karta is se adhik or kya chahega ,,,

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  18. सारी कवितायें निःशब्द करती हुयी सी
    लेकिन
    "एक शब्द लिखने के पहले" का प्रभाव जादुई सा लगा, साधारण से शब्दों का असाधारण प्रभाव!

    सृजक और सृजन दोनों को नमन!

    *amit anand

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  19. 'कविता में लंबी उदासी' एक सशक्त व प्रभावशाली कविता है. विमलेश को हार्दिक बधाई. साथ ही मैं इस शेर से बेहद प्रभावित हुआ:
    ये जो फैला है हवा में धुंआ धुंआ जैसा,
    रात भर साथ मेरे जिंदगी सा रहता है!
    उक्त दोनों उदाहरणों से कवि की प्रतिभा से साक्षात्कार रहता है. परंतु एक बात जरूर है कि यदि गज़ल के व्याकरण पर भी विमलेश जी ध्यान दें तो वे आज के सशक्त युवा गज़लकार भी हो सकते हैं. शेष कविताओं में भी वे एक संभावनाशील कवि होने का सुखद अहसास देते हैं. यदा कदा इन सशक्त कविताओं में सपाटता की घुसपैठ थोड़ी सी खलती है. कवि विमलेश जी मेरी किसी भी बात को अन्यथा नहीं लेंगे, ऐसी आशा करता हूँ. वे आज की पीढ़ी के एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं, यह अहसास भी बखूबी होता है.

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  20. vivashta hun ek gareeb pita ki ,
    ek maa ka khurdura hath hun ......

    WAAHH...............teekha andaz , shabd saral..behatreen kavita bimlesh ji

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  21. क्या करोगे मेरा...पहले पढ़ी हुई कविताओं से अलग कुछ ख़ास-जैसी लगी, ऐलानिया तौर पर अलग ओर ख़ास. बाक़ी कविताएं भी अपनी तरह का असर तो छोडती ही हैं.

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  22. पहले एक टिप्पणी छोड़ी थी, पता नहीं उसका क्या हुआ !
    "क्या करोगे मेरा" ओर "कविता में लंबी उदासी" अब तक की पढ़ी विमलेश की कविताओं में अलग ओर एक ख़ास तरह की विशिष्टता लिए हुए हैं.. ऐलानिया तौर पर. बाक़ी कविताएं अपनी अलग रंगतों की हिसाब से ठीक ही हैं, कुछेक पहले देखी हुई भी.
    इस नई टिप्पणी में चित्र की तारीफ़ भी करना अनुपयुक्त न होगा.

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  23. विमलेश की इन कविताओं में उनके शब्दों की बुनावट और कहने की शैली को संवेदना के स्तर पर समझा जा सकता है। उनके यहां शब्दों की बहुत महत्ता है। हर वाक्य और शब्द संवेदना से लबरेज हैं। कहना चाहिए कि समकालीन कविता में कुछ ऐसा करने की छटपटाहट भी उनके यहां है जो एक साथ आम पाठक और अकादमिक लोगों तक कविता को संप्रषणीय बनाती है। उनका संग्रह हम बचे रहेंगे का अलग अंदाज और शैली है। यहां एक कविता उनके संग्रह से भी ली गई है...कविता से लंबी उदासी। बाकी सारी कविताएं नई हैं..। पहले संग्रह से खुद को अलगाती हुई दिखती ये कविताएं अपने लिए एक भिन्न मार्ग की तलाश करती दिखती हैं। साहस कर के कहूं तो कहना चाहिए कि विमलेश अपनी कविता और कहानी के जरिए समकालीनों में एक अलग मुकाम बना चुके हैं.. अगर नहीं तो यह अब दूर नहीं... ढेर सारी बधाइयां....

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  24. Vimlesh ji ki kavitayein purn samvedna se sikt aur Abhibhut kar dene vali hain ! Adbhut sampresaniyata sahaj lok marm ! Badhayi ho sath me ham pathko ko padhvane hetu Dhanyavaad !!!

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  25. सभी कवितायें सुंदर है ....संवेदना से भरी हुई...बहुत कुछ कहती हुई....बधाई

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  26. suno.....us din etwar nhi ..pyar likha !!!!!!!
    achhi kavitayen bimlesh bhaiya ..:-)

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  27. मोहन दा.. कई बार स्पैम होने से टिप्पणी तुरन्त नहीं आती.. स्वत: रुक जाती है.
    चित्र की तारीफ के लिए शुक्रिया.

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  28. अच्छी कवितायें हैं विमलेश की , बधाई

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  29. 'एक शब्द लिखने के पहले '
    मुझे पसंद आयी और याद रहेगी. यही एक कवि के चलने का सलीका है .

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  30. विमलेश त्रिपाठी को काफ़ी समय से पढ़ता रहा हूँ। वे हमारे समय के उन युवा कवियों में हैं जिनसे उम्मीद की दुनिया कायम होती है। उनकी ये कवितायें 'लालटेनों की मद्धिम रोशनियाँ' है जिनसे आज की हिन्दी कविता की राह पर उम्मीद भर उजाला पैदा होता है।

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  31. इतनी अच्छी टिप्पणियों को देख कर किसी भी कवि को बहुत खुश होना चाहिए। जाहिर है कि मुझे भी खुशी हो रही है। लेकिन मेरी कोशिश हमेशा रहेगी कि इससे और अधिक अच्छा लिख सकूं। आपने कविताओं को इतनी गंभीरता से पढ़ा-सराहा। यह बहुत मानीखेज है। समालोचन, अरूण दा और सभी सुधि मित्रों, पाठकों और विद्वानों के प्रति सादर आभार..........

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  32. एक गैर-हिंदी -भाषी महानगर में आपने कविता की अपनी जमीन को सहेज कर रख रखा है , यह बेहद सुखकर और प्रीतिकर है |कविता को सच की दीवार की एक-एक ईंट के रूप में परिभाषित करना आपकी वस्तुगत कल्पनाशीलता और यथार्थ के रू-ब-रू होने का सबूत है | अन्य कवितायें भी आपके मिजाज का साक्ष्य प्रस्तुत करती हैं |भाव का विवेक के साथ साहचर्य बनाये रखना आपकी सृजन - कला की खासियत है |

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