परिप्रेक्ष्य : गॉड पार्टिकल का मिथ












विज्ञान के इस खोज़ को 'ईश्वरी कण' कहा जा रहा है. जो खोज़ ईश्वर की सृष्टि निर्माण की अवधारणा को खारिज़ करता है, आख़िरकार उसे ईश्वरी कहने के पीछे मंशा क्या है ?
युवा विज्ञान लेखक मनीष मोहन गोरे का आलेख जो इस अन्वेषण के महत्व और अर्थात पर केंद्रित है.


मनीष मोहन गोरे

एक आंकड़े के मुताबिक़ मीडिया में विज्ञान का कवरेज 3 से 5 प्रतिशत है और यह माना जाता है कि मीडिया द्वारा विज्ञान की ख़बरों को इतना कम तवज्जो देने से ही देश में वैज्ञानिक जागरूकता नहीं आ रही है. मगर ‘गॉड पार्टिकल’ की खोज से जुड़ी खबर को मीडिया ने इतना हाईक दिया कि जितना आइन्स्टाइन के सापेक्षिकता सिद्धांत को नहीं मिला था. कुछ अख़बारों ने तो इस खबर के पीछे चल रहे वैज्ञानिक शोध के स्वरूप और महत्व को उद्घाटित किया मगर अधिकांश अखबारों और इलेक्ट्रानिक चैनलों ने इस खबर को ईश्वर से जोड़कर इसे भ्रामक बनाने में अपनी खल भूमिका निभाई. एक अखबार ने पहले पन्ने पर इस बड़ी खबर को ‘अहम् ब्रह्मास्मि’ शीर्षक के साथ प्रकाशित किया. वहीँ पश्चिमी मीडिया ने भूलकर भी इसे ईश्वर, धर्म या ज्योतिष से नहीं जोड़ा. क्या भारत में विज्ञान की यही दशा है? विज्ञान की समझ को समाज व जनता तक ले जाने की एक जरुरी कड़ी के रूप में हम मीडिया को देखते हैं मगर क्या वह अपना दायित्व बखूबी पूरा कर रही है ? इसका आंकलन हमें ही करना होगा.

ब्रह्मांड के बारे में अभी तक हम बहुत ही कम जान पाए हैं. अंतरिक्ष, प्रकृति और इनमें चल रही घटनाओं के बारे में अगर हम कहें कि वैज्ञानिक महज 10 प्रतिशत जान पाए हैं तो अभी शेष 90 प्रतिशत जानना बाक़ी है. प्रकृति और पदार्थ के संचलन के पीछे जिन सिद्धांतों को जाना जा चूका है, अभी हमें उसी दिशा में सोचना-काम करना होगा. मगर हो सकता है कि ब्रह्मांड में कुछ और सिद्धांतों पर पदार्थ व सृष्टि काम कर रही हो, जो कि हमारे लिए अज्ञात है. खैर, ये जो ‘गॉड पार्टिकल’ का शोर पिछले दो-तीन दिनों से सुनाई दे रहा है, उसके पीछे पूरे विश्व को द्रव्यमान प्रदान करने वाले मूल कणों में से एक कण के समान कण ‘हिग्स बोसान’ को खोजने की कसरत है. इन हिग्स बोसान कणों के अस्तित्व की वैज्ञानिकों ने कल्पना की है, परन्तु वास्तव में ये कण स्वतंत्र रूप से मौजूद नहीं हैं. सर्न की प्रयोगशाला में इन कणों की जोरदार टक्कर से उत्पन्न असीम उर्जा से ऐसे कण बने हैं. दरअसल वैज्ञानिकों ने सृष्टि की उत्पत्ति वाले बिग बैंग सिद्धांत जैसी परिस्थितियों का कृत्रिम रूप से सृजन कर इन मूल कणों को खोजने के प्रयास किये हैं.

हिग्स बोसान नामक कण का नाम गॉड पार्टिकल रखा गया और पूरी दुनिया में इसका शोर फैलने लगा. दरअसल इस नाम के पीछे लियान लेडरमैन की कण भौतिकी पर केंद्रित लोकप्रिय विज्ञान पुस्तक ‘दि गॉड पार्टिकल: इफ दि यूनिवर्स इज दि आंसर, व्हाट इज दि क्वेश्चन ?’ मगर इस शीर्षक ने इस कण, कण भौतिकी तथा समूचे विज्ञान जगत को पसोपेश में डाल दिया. लेडरमैन के दिए इस नाम से हिग्स बोसान कण के एक खोजकर्ता पीटर हिग्स भी नाखुश हुए थे. हालांकि लेडरमैन के अपने तर्क थे. चूँकि इस कण की संरचना और गुणों को वर्तमान भौतिकी के ज्ञात सिद्धांतों के द्वारा समझ पाना कठिन है इसलिए लेडरमैन को इसे यह नाम देना पड़ा. हालांकि दोष लेडरमैन का भी नहीं था. वो तो उनकी किताब के प्रकाशक ने शीर्षक को रोचक और ध्यानाकर्षक बनाने के लिए इसे गॉडडैम पार्टिकल (Goddamn Particle) से गॉड पार्टिकल बना दिया .

हिग्स बोसान के बारे में बात करने से पहले मूल कणों की चर्चा करते हैं. वैज्ञानिकों ने जब ज्ञात ब्रह्मांड को बनाने वाले पदार्थों की खोज शुरू की तो आरम्भ में परमाणु को पदार्थ की मूल इकाई के रूप में समझा गया. मगर जब यह देखा गया कि प्रकृति में कुछ आवेशित और न्यूट्रल कण हैं जिनसे ये परमाणु बने हैं तब वैज्ञानिक परमाणुओं को रचने वाले कणों की खोज में जुट गए. फिर पदार्थ की रचना करने वाले क्वार्क, लेपटन, फोटान, ग्लूआन, और गॉस बोसान जैसे कणों की खोज हुई. विभिन्न बलों जैसे विद्युत चुम्बकीय बल और नाभिकीय बल को धारण करने वाले ये कण सैकड़ों की संख्या में होते हैं. वैज्ञानिकों ने व्यंग्य में इन कणों के जमघट को पार्टिकल जू (कणों का चिड़ियाघर) नाम दे दिया. कणों के साथ-साथ प्रकृति में इनके प्रति-कण भी पाए जाते हैं.

हिग्स कण एक सघन मूल कण होते हैं जिसे राबर्ट ब्राउट, फ्रैन्कोयिस एन्ग्लर्ट, पीटर हिग्स, जेराल्ड गुराल्निक, सी आर हगेन और टाम किब्ले ने 1964  में खोजा था और कण भौतिकी (पार्टिकल फिजिक्स) में ब्रह्मांड की उत्पत्ति से संबंधित स्टैण्डर्ड माडल की यह एक महत्वपूर्ण कड़ी है. इस कण में आतंरिक तौर पर कोई स्पिन (चक्रण) नहीं होता. चूंकि बोसान कण में भी स्पिन नहीं होता इसलिए इसे हिग्स की श्रेणी में रखा गया. दरअसल हिग्स बोसान को देखने के लिए अतिशय ऊर्जा वाले प्रोटानों की जरुरत पड़ती है इसलिए यह एक ऐसा मूल कण है जिसे प्राकृतिक रूप में कभी पाया नहीं गया और सर्न में चल रहे प्रयोग में 4 जुलाई 2012 को इसी हिग्स बोसान कण को देखने की घोषणा की गई है. यद्यपि इस बात की पुनः पुष्टि करना अपेक्षित है कि वास्तव में ये कण हिग्स बोसान ही हैं.
हिग्स बोसान की प्रकृति को लार्ज हेड्रान कोलाईडर की मदद से समझने के लिए यूरोपियन आर्गनाईजेशन फार न्यूक्लियर रिसर्च में 2010 के शुरू में प्रयोग-परीक्षण आरम्भ हुए थे.

हिग्स बोसान में बोसान शब्द खंड प्रतिभाशाली भारतीय वैज्ञानिक सत्येंद्र नाथ बोस को प्रकट करता है. बोस ने गैसों के क्वांटम स्टैटिस्टिक्स पर ढाका विश्वविद्यालय में अपना शोध पत्र पढ़ा और बाद में इसे प्रकाशन हेतु एक ब्रिटिश जर्नल में भेजा मगर उसने इस शोध पत्र को प्रकाशित करने से मना कर दिया. बोस ने तब शायद रुष्ट होकर अपने शोध पत्र की प्रामाणिकता जानने के लिए इसे सीधे अल्बर्ट आइन्स्टाइन को भेज दिया. आइन्स्टाइन ने इसे महत्वपूर्ण पाया और इसलिए इसका जर्मन भाषा में अनुवाद कर जर्मनी के एक जर्नल में इसे छपवा दिया. बोस के शोध को विश्व के वैज्ञानिक समुदाय ने तब मान्यता दी जब आइन्स्टाइन ने बोस के कार्य की पुष्टि में वर्ष 1924 में अपना एक संबंधित शोध पत्र दुनिया के सामने रखा. बोस और आइन्स्टाइन के संक्षिप्ताक्षरों को जोड़कर ‘बोसान’ शब्द दिया गया. दरअसल इन दोनों वैज्ञानिकों के शोध से प्राप्त प्रेरणा भी परमाणु से छोटे हिग्स बोसाब जैसे कणों की खोज के लिए उत्तरदायी रहा.

हिग्स बोसान कणों के स्वरूप को उद्घाटित कर वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड की एक गुत्थी को तो सुलझा लिया, परंतु अनेक ऎसी गुत्थियां और भी हैं जिन्हें सुलझाना अभी शेष है.

गुरुत्वाकर्षण एक बल है या दिक्-काल का एक गुण, इसे जानना बाकी है. गुरुत्वीय क्षेत्र के जो कण हैं, उनका अभी तक कोई सुराग नहीं मिला है और गुरुत्व की तरंगों को भी वैज्ञानिक अभी नहीं तलाश पाए हैं.

न्युट्रीनो कण जिसे भारहीन समझा जाता है, वे एक से दूसरे रूप में परिवर्तित होने के लिए तत्पर रहते हैं. इसका कारण अब तक अज्ञात है.

ब्रह्मांड में पदार्थों के प्रति-पदार्थ मौजूद नहीं हैं. यह एक बहुत बड़ा सवाल है जिसका जवाब हिग्स बोसान के बाद जानना है.

हाल के दशकों में वैज्ञानिकों ने ऐसे पदार्थ को खोजा है जिन्हें बनाने वाले पदार्थ अज्ञात हैं और इन्हें डार्क मैटर नाम दिया गया है. ब्रह्मांड का निरंतर विस्तार हो रहा है और पिछले 8 वर्षों से इस विस्तार की गति बढ़ गई है. ऐसा क्यों हो रहा है, इसका भी कोई सुराग हाथ नहीं लग पाया है. वैज्ञानिक इसका कारण डार्क एनर्जी को ठहराते हैं. मजे की बात है कि यह डार्क एनर्जी दिक्-काल से संबंधित है मगर हमारे ज्ञात गुरुत्व बल के विपरीत है. समूचे ब्रह्मांड का करीब 77 प्रतिशत डार्क एनर्जी है, करीब 19 प्रतिशत डार्क मैटर और बाकी बचा लगभग 4 प्रतिशत ज्ञात पदार्थ और उर्जा है. है न सर घुमाने वाली बात. यानि हमारे वैज्ञानिक अभी तक ब्रह्मांड में जितने पदार्थ और उर्जा को समझ पाए हैं, उसकी मात्रा महज 4 प्रतिशत है और शेष 96 प्रतिशत लगभग अनजाना है जैसे मानव मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों के कार्य और महत्व अज्ञात हैं.

मगर इसका अर्थ यह नहीं है कि जो कुछ अज्ञात है, उसे हम ईश्वर का सृजन मान लें. जैसा कि हिग्स बोसान की खोज पर भारतीय वैज्ञानिक और विज्ञान संचारक प्रोफ़ेसर यशपाल ने सही कहा कि यह विज्ञान की खोज है, भगवान की नहीं.

विज्ञान के वास्तविक स्वरूप को आम जन के सामने लाना आवश्यक है ताकि समाज और राष्ट्र के सर्वांगीण विकास में आम जन अपने ज्ञान आधारित निर्णय लेने में समर्थ हों.


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मनीष मोहन गोरे : वैज्ञानिक और विज्ञान संचारक
  कई पुस्तकें प्रकाशित
सम्प्रति : वैज्ञानिक, विज्ञान प्रसार, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार.
ई-पता: mmgore@vigyanprasar.gov.in 

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  1. वाह... सही समय पर जरूरी हस्‍तक्षेप। मनीष मोहन जी का यह आलेख पूरे संदर्भ को खोलकर सामने लाता है। 'गॉड पार्टिकल' के नामकरण का प्रसंग स्‍पष्‍ट करता है कि कैसे कभी-कभी कोई बारीक व्‍यंग्‍य भारी-भरकम विडंबना का भी आधार तैयार कर सकता है। बहरहाल, यहां आलेख में यह जानकारी सचमुच स्‍तब्‍ध कर देने वाली है कि ब्रह्मांड का 96 प्रतिशत प्रभाग अब तक वैज्ञानिक दृष्टि-परि‍धि से एकदम बाहर है। यह भी कम चिंताजनक नहीं कि ब्रह्मांड का लगातार विस्‍तार हो रहा है और यह गति विगत आठ वर्षों में बढ़ गई है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि विज्ञान क्षेत्र के वे लोग जो नई खोजों में जुटे हों और इन तमाम संदर्भों से रोज रू-ब-रू हो रहे हों, वे सृष्टि के भविष्‍य को लेकर कितने गहन तनाव में होंगे.. यह मूल्‍यवान पोस्‍ट उपलब्‍ध कराने के लिए 'आलोचन' का हार्दिक आभार..

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  2. बहुत अच्छा, किसी ऊहापोह , अतिरेक और आग्रह से मुक्त होकर लिखा गया उपयोगी जानकारी देने वाला आलेख !समालोचन का आभार !

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  3. एक जरुरी आलेख..बहुत रोचक और सार्थक. समालोचन और गोरे जी का खास शुक्रिया..
    हिग्स बोसान ने एक बार फिर आइन्स्टीन की क्वांटम थ्योरी की तरफ हमें लौटाया है. स्टीफ़न हाकिंग के उठाये सवालों को फिर घेरे में फंसा लिया है इस खोज ने. इस युग की दो महत्त्वपूर्ण खोजें हैं ..हाकिंग रेडियेशन के विरोध में ये खोज खड़ी हुई है ..या ये उसी का विस्तार है. लेख में डार्क मैटर का भी उल्लेख है .. इस सन्दर्भ में बिग बैंग को भी यहाँ होना चाहिए था जो इस फ़ील्ड की महत्त्वपूर्ण कड़ी है..

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  4. बहुत महत्वपूर्ण आलेख .... हम तो पहले ही सोचते थे , कि जब 'हिंग्स-बोसान' को इंडिया टी.वी. ले उड़े , तो समझ लीजिए यह 'कद्दू में हनुमान' ही होगा | (इंडिया टी.वी. जैसे ही जुमले के लिए मुआफी) | हवा में उड़ते हुए लोगो के लिए जमीन पर आना खलेगा तो जरुर , लेकिन इसी का नाम तो विज्ञान है , जो अपनी सामर्थ्य और सीमाओं दोनों को जानता है | आपको बहुत बधाई

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  5. वैज्ञानिक जानकारी से लबरेज लेख अच्छा ही हैं, इस पर कोई संदेह केसे हो सकता हैं. हम मानव प्रजाति ने ही समय के अंतराल के पश्चात स्वयं को सभ्य तथा बुद्धिशाली कहलाते कहते हूवे प्रकृति कि प्रतिएक कण, ऊर्जा, बल, समय, जीव आदि कि प्रतिपल क्रिया-प्रतिक्रिया-अंतःक्रिया की द्वंधात्मक सम्बन्धों की मुख्य अन्तर्निहित सत्ता को अपनी ज्ञान और अनुभूति की सीमाओं के अधीन ईश्वर की परिकल्पना भी जीव की भाँति कर दी . इस मायने मे हिग्स-बोसोन कण का शोध भी ईश्वर केसे कहा जा सकता हैं? हिग्स-बोसोन कण को God Particle कंहा के, किन लोगों ने कहा ? मुझे तो इस बार भी शक की सुई पश्चिम की तरफ दिखती हैं !

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  6. विज्ञान की इस नयी खोज को लेकर लिखा गया यह बहुत अच्छा लेख है. हिंदी में इस तरह के विज्ञान-लेखों का विस्तार होना ही चाहिए. अरुण देव को इस महत्वपूर्ण पहल के लिए बधाई.

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  7. विवेकानन्द ओझा7 जुल॰ 2012, 11:42:00 am

    मनीषजी का लेख न केवल रोचक एवं उपयोगी है बल्कि विज्ञान में जरा भी रुचि रखने वाले वाले के लिए समझने में आसान भी है। महत्वपूर्ण वैज्ञानिक खोज एवं उपलब्धियों के बारे में छपे कई सतही लेखों के बिलकुल विपरीत जो सटीक एवं सही जानकारी देता है। किन्तु विज्ञान के कवरेज को लेकर मीडिया की मजबूरी को भी समझना जरूरी है। खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के सामने चुनौती होती है कि विज्ञान की खबरों को इतना दिलचस्प और आसान बनाना कि आम दर्शक चैनल बदल न दे। इसके लिए कई बार अतिश्योक्ति का सहारा लेना पड़ता है। जैसे कि – “हिग्स-बोसान कण की सर्न द्वारा पुष्टि” के बजाय हम लिखेंगे – “सदी की सबसे महत्वपूर्ण वैज्ञानिक खोज,” “गॉड पार्टिकल पर वैज्ञानिकों की मुहर,” “ब्रह्मांड के आखिरी रहस्य से परदा उठा,” इत्यादि। इसका अर्थ यह नहीं है कि मीडिया गलत जानकारी दे पर हमें ऐसे शब्दों का प्रयोग करना होता है जिससे आम दर्शक जुड़ा हुआ महसूस करे। अगर हम सिर्फ तथ्यात्मक बातें लिखेंगे या कहेंगे तो दर्शक हमारे साथ रुकेंगे ही नहीं। मेरे विचार में लोकप्रिय मीडिया का इस तरह का कवरेज आम लोगों में विज्ञान के प्रति जागरूकता पैदा करता है जबकि मनीषजी का लेख उस जागरूकता को ज्ञान से सिंचित करता है। मेरे विचार में दोनो ही एक-दूसरे के पूरक हैं। धन्यवाद मनीषजी, अन्य वैज्ञानिक मुद्दों पर भी आपसे ऐसे ही लेखों की अपेक्षा रहेगी।
    विवेकानन्द ओझा

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  8. गम्भीरता एवं श्रमपूर्वक लिखा गया एक सार्थक लेख, जो जनमानस में फैल रही अनेक भ्रान्तियों को दूर करने में सहायक है। इस सार्थक चिंतन के लिए मनीष जी को हार्दिक बधाई!
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    ’हिग्स बोसॉन का असली देवता!’
    ’ब्लॉग लेखन और वैज्ञानिक मनोवृत्ति’

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  9. बहुत बढ़िया लिखा है मनीष

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  10. सही समय पर एक जरूरी हस्तक्षेप.बधाई अरुण सर.हालाँकि इस विवाद में कुछ अधकचरे वैज्ञानिक भी शामिल रहे हैं.उन्हें भी बेनकाब करना जरूरी है.बहुत पहले भारतेंदु ने इस धुंध को छांटते हुए ही साहित्य की धरती बोनी शुरू की थी.एक बार पुनः साधुवाद आपको.

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  11. उपयोगी लेख है. दुनियाभर के मज़हबियों का अदृश्य दबाव ही कदाचित वह मनोवैज्ञानिक कारण है कि जिस ईश्वर की अवधारणा को यह खोज खंडित करती है, इस कण के साथ उसका नाम जोड़ दिया गया है :Goddamn की जगहGod !

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  12. सार्थक एवं तथ्य परक पहल... मेरी शुभकामनाये !!!

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  13. Thanks Manish,,,, You have done a fantastic job,,,Through your article only ,,now I am able to understand God Particles,,,, warna log pata nahi kya kya baaten kar rahe the,,,even electronic media..!!!!!!

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  14. पता नहीं, किसी सिद्धांत के प्रतिपादन को भगवान जैसा महत्व कैसे दिया जा सकता है...आश्चर्य ही है..

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  15. Kudos to Mr Manish ji in bringing out an informative write up on the recent development on Higgs boson. The discovery has been possible due to pooled-in skill and brains of thousands of scientists from all over the world including India. This is the beginning of a long journey. The discovery has provided a platform to work on new avenues for other ideas in our attempt to understand the universe. Since, the discovery of a new particle is based on the hypothesis put-forth by our great scientist S N Bose, every Indian should feel proud over the discovery.
    Dr K N Pandey

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  16. क्‍या अजीब बात है ब्रम्‍हांड के महज चार प्रतिशत पदार्थ उर्जा को हमारे वैज्ञानिक जान पाए हैवह भी सारे लोग नहीं फिर भी इंसान पूरी कायनात पर अपनी सत्‍ता की दंभ भरता है. यह भी बहुत जरूरी है कि इन छुपे रहस्‍यों की जानकारी का प्रतिशत पूरे विश्‍व के वैज्ञानिकों के प्रयास से जल्‍दी से जल्‍दी बढे ताकि हमें ईश्‍वर के नाम पर चलने वाली दुकानदारी से मुक्ति मिले. खासकर हिन्‍दी को मनीष मोहन गोरे जैसे लेखकों एवं अरूण देव जी जैसे संपादकों की बहुत आवश्‍यकता है ताकि सरल सुगम तरीके से विज्ञान बीच में बिना गॉड या इश्‍वर की पेच फंसे आम लोगों को जानकारी के लिए मुहैया हो सके.

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  17. विषय कठिन है , चित्रों के माध्यम से इसे अधिक ग्राह्य बनाया जा सकता था.

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  18. बहुत प्राचीनकाल से ही भारत ज्योतिषीय व्यवस्था के आधार पर चल रहा या चलाया जा रहा है ,बल्कि अगर यह कहें की ज्योतिष ,कर्मकांड इत्यादि को एक तरह से भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग के रूप में स्वीकार कर लिया गया तो गलत नहीं होगा |पश्चिम में आरम्भ से ही वैचारिकता का प्राधान्य है ,ज्योतिष या हर शै को ईश्वर के वरदान के रूप में स्वीकारना वहाँ की सोच नहीं है |
    मनीष बहुत प्रतिभासंपन्न विज्ञान लेखक हैं ....और यह आलेख उनके प्रतिभा की कहानी स्वयं कहता है ...बहुत अच्छा और सहज लेख ....जो न सिर्फ उन तमाम भ्रमों को दूर करता है जो मीडिया ने सुना सुना कर हमारे दिमाग में भर दिया था ,बल्कि इस नायब खोज की सार्थकता को सहज तरीके से समझाया भी है |इस लेख में ऐसी जुडी अनेक ऐसी सूचनाएं ई जो किसी मीडिया ने अपने शो या समाचारों में नहीं बताई ,साफ है भारतीय मीडिया किसी भी सूचना को बताने से पहले उस पर ठीक होमवर्क भी नहीं करती|भारत में हिन्दी में विज्ञान लेखन इस लिए भी नहीं ठीक से पनप सका क्यों की ,बहुत आसानी और सहज़ता से विज्ञान के गूढ़ रहस्यों को हिन्दी में पाठकों को बताने वाले लेखक बहुत ही कम हैं ,मनीष लगता है इस कमी को जरुर दूर करेंगे |बधाई इतना सूचनात्मक आलेख के लिए और अरुण आपको धन्यवाद कि इतने ज्वलंत विषय की उपस्थिति समालोचन पर दर्ज कराई |

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  19. Interesting article particularly for the readers who are from non-science background. Indeed a very timely article, and the beauty is that it has been brought out in a very short time. Congratulations to Manish ji for putting many perspectives which have made it so readable.

    Krishna Kumar Mishra
    HBCSE (TIFR)
    Mumbai

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  20. You have written very knowledgeable facts about God Particle Like Higgs Boson.I am able to clear more doubt about God Particle throughout your article.My best wishes for this,

    Janmajai Tripathi
    JABONG.Com
    103, Udhog Vihar Phase-1,
    Gurgaon,Haryana.

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  21. मनीष जी ने अपने लेख में हिग्स बोसोंन की खोज और उससे जुड़े मुद्दों को बड़ी सहज और सरल रूप में सामने रखा है . जो सराहनीय हे. मगर साथ ही कुछ ऐसे मुद्दे भी उठाये हैं जो समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा करने में मीडिया की भूमिका से सम्बंधित हैं. हिग्स बोसों के साथ गाड पार्टिकल का नाम जुड़ गया तो मीडिया ने हाथों हाथ ले लिया और उछाल दिया क्यों की लोगों की भावनाओं से भी जुड़ा है और मीडिया की टी आर पि से भी जुड़ा है. मनीष जी ने मीडिया को एक ऐसी महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में बताया है, जो विज्ञानं की समझ को आम जनता तक ले जा सकती है, जो सच भी है, लेकिन क्या मीडिया अपना दायित्वा बखूबी निभा रहा है? यह बात बड़ी गहनता से सोचने की है. इसके क्या कारण हो सकते हैं? मुझे जो समझ आता है वह यह है कि मीडिया उन बातों को ज्यादा तबज्जो देता है जिनसे उनकी टीआरपि बढाती हो, जो ब्रेकिंग न्यूज़ बनाये जा सकते हों, इसीसे जुडी दूसरी प्रमुख बात यह सोचने कि है कि मीडिया से जुड़े लोगों में से कितनो को वैज्ञानिक समाचारों और वैज्ञानिक विषयों पर रिपोर्टिंग कि विशेष ट्रेनिंग दी जाती है? क्या इस दिशा में विज्ञानं संचार से जुड़े प्रमुख संसथान कुछ विशेष कदम उठा सकते हैं?
    मनीष जी को महत्वपूर्ण विषय पर रोचक लेख प्रस्तुत करने और कुछ विशेष मुद्दों को उठाने के लए बधाई !!
    डा. ओउम प्रकाश शर्मा

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  22. संतुलित, उपयोगी, समयानुकूल और बहुत ज्ञानबर्धक आलेख के लिए 'मनीष मोहान गोरे जी' को समालोचन को धन्यवाद| लेखक ने लेख के शुरात में कुछ प्रश्न उठाये हैं भरत में विज्ञान और भारतीय मीडिया की मानसिकता को लेकर, उनपर भी ध्यान दिया जाना चाहिए |

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