कथा - गाथा : चन्दन पाण्डेय








हिंदी कहानी में युवा रचनाशीलता के प्रतिनिधि के रूप में चंदन पाण्डेय समादृत हैं. समय और समाज को देखने का उनका अपना नजरिया है और उसे प्रस्तुत करने के  लिए अक्सर वह कहानी के प्रदत्त ढांचे में कुछ इस तरह तोड़ – फोड़ करते हैं कि यथार्थ अपनी समग्रता में सामने आता है और गहरा असर रखता है.  प्रस्तुत कहानी में भ्रष्ट आचार को कथा सूत्र में बांधने के लिए डायरी के पन्नें मददगार साबित हुए हैं.  



लक्ष्य शतक का नारा                  

चन्दन पाण्डेय 
   

( घोषणा : रिश्वत की डायरी के गायब पृष्ठों के बारे में यह डिस्क्लेमर लिखते हुए मुझे ऐसी हँसी छूट रही है कि क्या बताऊँ, पर लिखना तो पड़ेगा, आखिर जान किसे प्यारी नहीं होती. तो कहता हूँ कि इस कथा में एक एक शब्द गल्प है. इसका किसी भारतीय से न लेना एक न देना दो है. किसी के जीवन से इस कथा का हिस्सा मेल खाए तो अपनी हँसी रोकते हुए बता रहा हूँ कि वह अपवाद नहीं, महज संयोग होगा. अद्भुत संयोग. )  


ठाकुर प्रसाद प्रकाशन की डायरी के कुछ जले हुए पृष्ठ है जो तुरंत बीते वर्तमान के सुनहले कूड़ेदान में मिला.

पृष्ठ संख्या – 1
नौ अगस्त 2010
थाने का विक्रय मूल्य, क्रय मूल्य,लाभ तथा प्रतिशत लाभ का हिसाब किताब:
जिला : क.
थानों की संख्या : 20. 
क्रम संख्या
थाने से सालाना आय सीमा
थानों की संख्या और उनके नाम
आय विवरण
रिश्वती आय बढ़ाने के लिए जिन क्षेत्रों में मेहनत करनी है.
1
20 लाख तथा उससे कम
7 थाने ; ख, य,र,ल, ह, क्ष 
ट्रक और ट्रांस्पोर्ट कमीशन, फेरी वाले, रेहड़ तथा दुकान वाले
. चुस्त दरोगा की नियुक्ति
तथा आय सीमा लक्ष्य बढ़ा कर पचास लाख करना.
2
20 से 50 लाख
8 थाने: ज, च,झ,ण,त्र, ग,घ,झ
रेत खनन कमीशन तथा उन्हें सुरक्षित थाना क्षेत्र से बाहर पहुँचाने का कमीशन
फुटकर व्यापारियों पर तलवार कस कर रखनी है.
3
50 लाख से 70 लाख
2 थाने, म और फ
कोलियरी ठेके और कोयला ढुलाई से तथा अन्य कार्य
कमीशन बढ़ाना है. तथा जहाँ एक बार के लिए जारी रसीद पर कोयले बीस बार ढोए जा रहे थे उन्हें घटा कर दस करना है.
4
70 लाख तथा उससे ऊपर
3 थाने क, प, ब
वनवासी सुरक्षा फंड, आतंक निरोधी फंड से, मुठभेड़ फंड से,  
मुठभेड़ फंड से अलग, अब उन अपराधियों के घर से भी पैसे लेने होंगे जो पाँच से सात लाख के बीच कहीं ठहरती है. फिर इन थानों की आय एक करोड़ हो जायेगी और इस तरह हम आदर्श थाना निर्माण की तरफ अग्रसर होंगे. 

इस वर्ष थानों से जिले की आय का लक्ष्य सौ करोड़ का है और सभी थानों के लिए नारा रहेगा – “लक्ष्य शतक”. लक्ष्य पूरा होने पर बजरंग बली की मूर्ति स्थापना तथा भव्य मन्दिर का निर्माण.  


पृष्ठ संख्या – 2
नौ अगस्त, 2010
( ** टका से यहाँ तात्पर्य हजार का है

-    जय माँ जगदम्बे काली -  
दिया (Debit)
लिया (Credit)
साहब के बंगले का टेलिफोन बिल – 24 टका (जून और जुलाई महीने का), सिपाही का फोन कल ही आया था. 
भिखारियों से : 20 टका ( इनमें से कईयों को तड़ीपार करना है, इन्हें भीख कम मिलने लगी है, कल एक हवलदार को जाँच के लिए भेजना है कि जिन 10 बच्चों बाहर से मँगाए थे, उनमें से कितने भीख माँगने के काबिल हो गए हैं.)
मैडम ( साहब की पत्नी )की खरीददारी के लिए मुंशी भेजा – 25 टका. 10 टका कम पड़ा सो उधार लगा दिया. सामान की भूखी है, साली.   
फुटपाथी व्यापारियों से : 100 टका. नए फुटपाथियों ने चोखा धन्धा दिया है. 
35 टका (10 टका होटेल और 25 टका राजधानी) भिजवाया. चीफ साहब ठहरे थे. राजधानी से आई लड़की के लिए 25 टका और हवाई यात्रा का खर्च.  
यातायात से : 200 टका. कल से फी ट्रक – 40 रूपए रोज, बस से 40 रूपए रोज, ऑटो रिक्शा – 20 रूपए रोज 
60 टके की कालीन, चीफ साहब को पसन्द आई. पैक कराया. कालीन व्यवसायी को लाईन पर लेना है. कैश माँग रहा था, कल से एक हवलदार उसके पीछे.
100 टका, रामपुर रेप केस.
पैसे के साथ लड़की भी, दो दिन थाने में रखेंगे.   
6000 टका, बेटे का प्रवेश एम.डी. (मास्टर ऑफ मेडिसीन) कोर्स के लिए सरकारी कॉलेज में हो ही गया. देश की शिक्षा व्यव्स्था कैसी रिश्वतखोर हो गई है. रिश्वत हम भी लेते हैं भाई पर ऐसे किसी का खून नहीं चूसते. साठ लाख ! बेटा भी चिकित्सा से अधिक विवाह ही पढ़ रहा है. एम.डी. कर ले तो जो जमीन राजधानी में कब्जा कर रखी है उस पर एक बढिया अस्पताल खोल दिया जाए.
50 टका, बाईक और कार चोरों से, आज एक इंडिका और स्पेलन्डर बाहर गई, वो कल पेमेंट देंगे.

200 टका; कोयला परमिट के नाम

2 टका ; सब्जी बेचने वालियों से

30 टका ; जंगल विभाग से, बहुत उड़ रहे थे रेंजर  साहब, कतर दिया, ट्रक पकड़ा और साले को पैसा लेकर थाने बुलाया, इंतज़ार कराया, अब बेटी की व्याह में होने वाले लकड़ी खर्च के लिए तैयार हो गया है. दो सिल्ली शेखू, दो सिल्ली सागौन और एक शीशम.

कुल आगत : 8 लाख
कुल खर्च : 2.5 लाख
बचत : 5.5 लाख , और काहे की बचत? साठ लाख तो बेटे की फीस और डोनेशन ही दे दी. उसे ‘ रिकवर’ करने के लिए एक गाँव, दस बीघे जंगल और दो ट्रक पकड़ने की योजना कल से लागू.
सोने से पहले माँ जगदम्बे को प्रणाम, अगर कल कोई ट्रक, जंगल और गाँव रगड़ने दिया तो उनके मन्दिर के दरवाजे पर नए कुण्डे लगवाने का संकल्प लेता हूँ.

!! जै जगदम्बे !!


पृष्ठ संख्या 3
9 अगस्त 2010

चिकित्सा शास्त्र (परास्नातक) परीक्षा मंडल (चिव्यापम) से हुए आय व्यय का ब्यौरा

एम. डी. कुल सीट : 25
परीक्षा से पास होकर प्रवेश पाने वाली की संख्या सिर्फ पाँच कर दी गई है. यह मंत्री बहादुर है पिछला तो ऐसा लीचड़ था कि खाने खिलाने के नाम पर बस पाँच ही सीट छोड़े रहा.  
सौदे के लिए उपलब्ध सीट : 20
प्रति सीट आमदनी : 60 लाख
प्रति सीट बचत : 6 लाख
राशि बँटवारे का ब्यौरा

बँटवारा  ( 60 लाख प्रति उम्मीदवार से हुए लाभ का बँटवारा )
मद / वजह
10 प्रतिशत ( 6 लाख )
सरैयाँ बाबा के माँ अम्बे ट्रस्ट, वहाँ से जारी पाप निवारक दस्तावेज की पाँच नकल तैयार. मूल प्रति मानव संसाधन विकास मंत्री के दरवाजे.

माँ के आशिर्वाद से आज तक हमारे समूह के किसी कार्य में विघ्न बाधा नहीं आई. हम अपनी तनख्वाह से अलग सभी आमदनी का दस फीसदी माँ के चरणों चढ़ाकर उन्हें भी पार्टनर बनातें हैं.

जगदम्बा देवी के सामूहिक पार्टनरशिप के अलावा :-
·         मंत्री सोने का कपाट दान करेंगे
·         मुख्य सचिव राजधानी से मन्दिर तक नंगे पाँव रोज जाएंगे और कार से वापस आयेंगे
·         मैं मन्दिर जाया करूँगा और दुर्गा चालीसा का पाठ करूँगा.     
55 प्रतिशत ( 33 लाख ) तथा बीच बीच में छात्राएँ.


** लड़कियों पर शर्तें लागू
मंत्री जी के रिश्तेदार के चाची के ताया के बेटे की बेटी के बैंक खाते में. पासबुक मंत्री जी के भाई की निगरानी में.

अगर कॉलेज से बाहर की लड़की लाई जाए तो तीस से चालीस हजार प्रति रात्रि. वैसे मंत्री या मुख्य सचिव ज्यादातर कॉलेज की ही लड़कियों को प्राथमिकता देते हैं.
5 प्रतिशत (3 लाख)  
दलाल को. इन्हें परीक्षा फॉर्म से लेकर फोन नम्बर दे दिए थे. इन सबको साफ निर्देश है कि सिर्फ बड़े उंचे अधिकारियों के बच्चों को ही टार्गेट करें जो डिग्री लेने के इच्छुक हों. जो ग्राहक साठ लाख देने को तैयार हो जाए, उसे ही सचिव से मिलवाएँ. ग्राहक के आने जाने का खर्च ग्राहक को ही उठाना होगा. महिला उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जाएगी.  
20 प्रतिशत ( 12 लाख)  
सचिव तथा अन्य अधिकारियों के बीच

पैसे से अलग रहा लड़कियों का सवाल तो उनका बँटवारा - जैसा ऊपर बताया   
10 प्रतिशत (6 लाख )
अब अपनी तारीफ किस मुँह से करूँ? नजर न लगे.   




पृष्ठ संख्या 4
नौ अगस्त 2010

चिकित्सा महाविद्यालयों में शिक्षा तथा परीक्षा प्रणाली.

शिक्षकों से :
Ø  उन प्रोफेसरान से भी दस प्रतिशत लेना है, जो शोधार्थियों के जे.आर.एफ सम्बन्धित बिल और कंटिंजेंसी बिल साईन करने के एवज में कुल बिल राशि का पन्द्रह फीसदी पहले ही जमा करा लेने के बाद अपने स्वर्णिम हस्ताक्षर करते हैं.
Ø  सेमिनार आदि का बिल पास करने से पहले पच्चीस प्रतिशत नकद.


छात्रों के लिए, प्रथम श्रेणी पाना चाहते हों तो कृपया निम्नलिखित शर्तों का ध्यान धरें:
·         उपस्थिति : 95 % उपस्थिति अनिवार्य – इससे कम की स्थिति में 2000 रूपए प्रति कक्षा
·         लिखित परीक्षा : यह परीक्षा मेधावी विद्यार्थियों के लिए भी कठिन होती है, फिर तो जिस तरीके से भतेरे उम्मीदवारों का प्रवेश हुआ होता है वैसे छात्रों के लिए यह परीक्षा अत्यंत कठिन होती है.  यह कॉपी जाँच के लिए बाहर जाती है इसलिए पढ़ के पास होना होगा या फिर दो लाख रूपए प्रति पेपर.
·         प्रायोगिक परीक्षा : 50000 प्रति पेपर या अगर बाहर से आए परीक्षक को आप पसन्द हों, जो कि भारत में कम कम ही सम्भव है पर कभी कभी हो जाता है.
·         डिग्री : अब कितना दोगे सरजी पर जो भी आपकी इच्छा हो वैसे यह राशि क्लर्क समुदाय को जायेगी.
छात्राओं के लिए: प्रथम श्रेणी पाना चाहते हों तो कृपया निम्नलिखित शर्तों का ध्यान धरें. ( यहाँ अक्षरों की आग और आँच से डायरी का पन्ना जलने लगता है और उससे चमड़े के जलने की दुर्गन्ध फैल जाती है )
·         उपस्थिति :  95 % उपस्थिति अनिवार्य – इससे कम की स्थिति में हरेक पेपर के लेक्चरर पर निर्भर करता है. अमूमन 2000 रूपए प्रति कक्षा. 
·         लिखित परीक्षा : यह परीक्षा मेधावी विद्यार्थियों के लिए भी कठिन होती है, फिर तो जिस तरीके से भतेरे उम्मीदवारों का प्रवेश हुआ होता है वैसे छात्रों के लिए यह परीक्षा अत्यंत कठिन होती है. यह कॉपी जाँच के लिए बाहर जाती है इसलिए पढ़ के पास होना होगा या कुछ सीढियाँ चढ़कर. मुख्य परीक्षा अधिकारी, श्रीमान क. दलाल,  इसके रिकॉर्ड्स रखते हैं.   
·         प्रायोगिक परीक्षा : 50000 प्रति पेपर या अगर बाहर से आए परीक्षक को आप पसन्द हों. अथवा मुख्य परीक्षा अधिकारी तथा अनुयायियों के साथ या फिर मंत्री या सचिव या तमाम जिन्हें हो सकता है, आप जानती भी न हों.  
·         इससे अलग अगर आप मंत्री या उसके घेरे के किसी को पसन्द आ गईं तब विरोध के लिए भी कृपया शान्ति बनायें रखें. रणक्षेत्र में ही न्याय होगा.

उपनियम 1 , 2 और 3:
1)      रोएँ नहीं, भाग सकती हैं तो भाग जाएँ.
2)      चूँकि स्नातकोत्तर की शिक्षा के दौरान गर्भधारण अव्यहारिक माना जाता है इसलिए निरोग सुरक्षा के इंतजामात खुद करें.
3)      कोशिश करें कि उपस्थिति रजिस्टर पूरा रहे, कोशिश करें कि आप प्रथम श्रेणी की लालच में न फँसें. आगे जीवन में आपको मरीज मिलेंगे, डिग्री पूछने वाले अधिकारी नहीं. आपके लालच न करने के कारण वहाँ की फैकल्टी आपका जीना दूभर कर देगी पर यह भी तो सोचिए कि इतने सब नरक के बाद जीवन तो यों भी दूभर हो जाएगा.   


पृष्ठ संख्या 5
नौ अगस्त 2010

उस शख्स का रोजनामचा, जिसका प्रवेश मेरिट के अनुसार तय था अगर काबिलियत से प्रवेश दिलाने वाली सीट्स की संख्या बीस से घटा कर पाँच न की गई होती.


नाम – सुनयना,
उम्र – तेईस,
शिक्षा - एम.बी.बी.एस,( राज्य द्वारा आयोजित पी.एम.टी परीक्षा में प्राप्त अच्छे स्थान के कारण राजकीय मेडिकल कॉलेज से चिकित्सा शास्त्र से स्नातक )
काम – माँ जगदम्बे ट्रस्ट के अस्पताल में जूनियर पैथोलॉजिस्ट (जबकि उसने एम.बी.बी.एस कर रखा है)
वेतन -  साढ़े छ: हजार + डेढ़ हजार यात्रा भत्ता

सुनयना का रोजनामचा :
सुबह सात बजे : घर से निकलना.
नौ बजे : अस्पताल पहुँचना.
साढे नौ बजे : पिछले दिन की रिपोर्ट व्यवस्थित करना तथा उसे मरीजों या उनके घर वालों को सौँपना.
दस बजे: डॉक्टर का आना, इस डॉक्टर ने उपर बताए गए तरीके से एम.डी. कर रखा है इसलिए फटाफट जाँच लिखता है, एक्स रे, कॉपर साल्ट टेस्ट, सोनोग्राफी. सारी जाँच के इतना खुश हो जाता है कि अनुमान से दवाएँ भी लिख मारता है.
यह शाम के सात बजे तक चलता है. बीच में सुनयना से छेड़ भी चला लेता है. प्रेम करने के दावे करता है. प्रेम करने के दावों में सघन स्पर्श ही जानता है.
शाम/रात नौ बजे तक घर पहुँचती है.

और ...

विश्वास का कोई क्या करे कि जितना भी समय बचा पाती है, उसमें एम.डी. के प्रवेश परीक्षा की तैयारी करती है. सारे समीकरण जानते बूझते भी उसने एक ‘टेस्ट सीरिज जॉईन’ कर रखी है और हर इतवार उस टेस्ट सीरिज के सेंटर पर परीक्षा देने जाती है. इससे पता चलते रहता है कि वो अभी कितने पानी में है. या कितनी आग बची है.   
                             _____________________________________________
कहानी - दूब की वर्णमाला 

चन्दन  पाण्डेय
9 अगस्त 1982, पटखौली, देवरिया, उत्तर प्रदेश
कहानी संग्रह : भूलना, इश्कफरेब, जंक्शन. (भारतीय ज्ञानपीठ)
ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार, कृष्ण बलदेव वैद फेलोशिपशैलेश मटियानी कथा पुरस्कार
मेटाहेलिक्स लाइफ साइंसेज, बंगलुरू  में कार्यरत
chandanpandy1@gmail.com  

12/Post a Comment/Comments

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  1. कहानी का प्रेग्मेटिज्म प्रभावित करता है ..कहानी के बाहर जीवन के विवरण ख़ास वातावरण को जन्म दे रहे हैं . चन्दन जी को बधाई ..समालोचन शुक्रिया .

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  2. इस पाठक को कहानी बढ़िया लगी ! चन्दन जी अच्छा लिखते हैं और आज के कहानीकारों में अव्वल हैं ! इसे लिखने के लिए चन्दन जी का और पढ़वाने के लिए समालोचन का शुक्रिया

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  3. ek alhadaa kism se likhi badhiya kahaani...padhte hue poore samay ek jigyasa bani rahi aage padhne ki...
    sunita

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  4. जुदा तेवर। नया फ़ारमेट। निराली कहन। बहुत अलग। रोचक प्रस्तुति ।
    अच्छा लगा। शुक्रिया बधाई।

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  5. पहल में भी पढ़ ली थी नए प्रकार से लिखने की बधाई और बाकि तो चन्दन एक अच्छे संवेदनशील कथाकार है ही
    सस्नेह

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  6. हा हा हा ...... पहले देख कर ही कहानी बंद कर दी के ये कोई कहानी है? फिर सोचा चलो एक बार थोडा पढ़ के देखते हैं चन्दन क्या तजुर्बा कर रहे हैं तो जब पढ़ना शुरू तो पूरी पढ़ गया. करीब बीस साल पहले एक वाक्या याद आ गया एक दारोग़ा से जन पहचान थी वह बताते थे के जिले में १८ थाने हैं और हर थाने से एस पी को १० हज़ार रुपये हर महीने जाते हैं, इस के अलावा शराब के ठेकों और ट्रांसपोर्टर व पेट्रोल पम्प अलग से. इस कहानी से लग रहा है पुलिस अच्छी तरक्की कर रही है.

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  7. अलग तर की ... बहुत ही रोचक प्रस्तुति ... परिवेश बदल रहा है आज की कहानी का ...

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  8. its v interesting & different ....thanx for send me link.
    anita

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  9. इसको कोई कहानी ही क्युं कहेगा? झेलाऊ है एकदम

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  10. नूतन डिमरी गैरोला29 जून 2014, 9:49:00 pm

    चन्दन पाण्डेय की इश्कफरेब पढने के बाद मैंने उनकी यह कहानी बिल्कुल ही अलग फोर्मेट में पायी .... लेखाजोखा भी बहुत बढ़िया ढंग से ..रिश्वत और रिश्वत खोरी की अजब कहानी कहती एक डायरी ...जिसमे राजनीति, पुलिस और शिक्षा विशेषतया परास्नातक चिकित्सीय शिक्षा में फैला रिश्वत का तंत्र कैसे कार्य करता है बखूबी व्यक्त ही नहीं अपितु कहानी एक दर्द भरे मोड़ पर ख़तम होती है जहाँ एक योग्य छात्रा ( रिश्वततंत्र में अयोग्य ) जो की परास्नातक शिक्षा के लिए हाथ पैर मार रही है उसके समूचे प्रयास को कहा जाता है कि इससे पता चलते रहता है कि वो अभी कितने पानी में है. या कितनी आग बची है. बहुत गहरे दिल को छूता है ..समाज में पैसा योग्यता पर हावी है .. एक सच्ची कहानी ... धन्यवाद समालोचन पत्रिका को, धन्यवाद अरुण

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