मंगलाचार : अहर्निशसागर

























American photojournalist Steve McCurry

अहर्निशसागर (सिरोही, राजस्थान,June7,1988)  की कविताएँ समकालीन और सुगढ़ हैं, किसी युवा कवि की प्रारम्भिक कविताओं में ऐसा कम देखने को मिलता है. उनमें प्रचलित कवि-शैलिओं के रूढ़ मुहावरों से अलग अपनी एक पहचान है, जो कवि के रूप में उनके भविष्य को लेकर एक उम्मीद  है. शीर्षक विहीन इन सात कविताओं में संवेदना और विचार के कई रंग और राग हैं. कुछ कविताएँ अपने मारक व्यंग्य से निरुत्तर कर देती हैं खासकर अंतिम कविता.
___________ 

१.

मेरे घर में
मैं गेहूं के बीच पारे की तरह गिरा हुआ हूँ
पाटों के बीच पीसे जाने से पहले
एक स्त्री के हाथ मुझे बचा लेंगे


उसके साहचर्य के ख़ातिर
मैं जीवन की सरहद पर रहा
इतना कमतर था जीवन
की उस स्त्री का माकूल हिस्सा
मृत्यु की हद में रह गया था


हे ब्रह्मांड की वालिदा !
तुमनें क्या सोच कर
मेरे छोटे से घर में
मेरा झूठन खाया था ?


"बुलबुल,
बसंत की प्रेमिका
पतझड़ की पुत्री
अपने नाम के बरक्स कितनी छोटी ?
अपने हिस्से की जगह जीवन को पुन: सौंप कर
धरती से लगभग गायब सी"
उसने बताया मुझे--
एक पुरुष को बुलबुल की तरह होना चाहिए


मैं दुःख में जितना
दारुण हो जाता हूँ
वह उतनी ही करुण हो जाती हैं
एक सभ्यता का क्षरण हो रहा हैं
और क्या हो सकता था
एक स्त्रीविहीन सभ्यता के साथ ?


२ :

सिवाय राख के
सबकुछ जल गया हैं
राख का रंग हरा रंग हैं
देखो, धरती कितनी हरी हैं

सिवाय आसमान के
सब कुछ खुला छोड़ दिया हैं
अब मुक्त हैं हर कुछ, सिवाय पंछियों के
कितना खुश हूँ मैं अपने खोल में

मैं मछली की वो जात हूँ
जिसकी दस पीढियां एक्वेरियम में बीत चुकी हैं
मेरे लिए समन्दर एक मिथक है


३:

रविवार की सुबह
एक बच्चा प्रवेश करता हैं चर्च में
प्रार्थना के बीच टोकता हैं पादरी को-
"तू भटक गया हैं पादरी, चल मेरे साथ चल
------मैं तेरा घर जानता हूँ"
पादरी, प्रार्थना के उपरांत
बच्चे को उसके घर छोड़ आता हैं



किसान जमीन पर घुटने टेक
प्रार्थना करता हैं बारिश के देवता से
सुदूर आकाश में उड़ते गिद्ध
प्रार्थना करते हैं अनावृष्टि की
विरोधी प्रार्थनाएं टकराती हैं आकाश में
असमंजस में पड़ा बारिश का देवता
निर्णय के लिए एक सिक्का उछालता हैं


पहाड़ की नोक पर
उग आये सूरज को देखकर
बच्चा प्रार्थना करता हैं--
काश, ये सूरज गेंद की तरह टप्पे खाता
उसके पैरों में आकर गिर जाएँ

बच्चों की प्रार्थनाओं से घबराया हुआ ईश्वर
अपने नवजात पुत्र का सिर काट देता हैं


हम अपनी प्रार्थनाओं में
लम्बी उम्र की कामना करते हैं
कामना करते हैं सौष्ठव शरीर
और अच्छे स्वास्थ्य की

लेकिन उस युद्ध ग्रस्त देश में
जब प्रार्थना के लिए हाथ उठते हैं
वे कामना करते हैं-
हमारे सीने को इतना चौड़ा करना
की कारतूस उसे भेद हमारे बच्चों तक ना पहुंचे
हमें घर की सीढ़ियों से उतरते हुए गिरा देना
ताकि औरतों को लाशों के ढेर में हमें खोजना ना पड़ें

हे ईश्वर
जब युद्ध प्रार्थनाओं को भी विकृत कर दें
तू योद्धाओं से उनकी वीरता छीन लेना


बुद्ध ने अपने अंतिम व्याख्यान में
प्रार्थनाओं को निषेध कर दिया

कही कोई ईश्वर नहीं,
तुम्हारी प्रार्थनाएँ मनाकाश में
विचरती हैं निशाचरों की तरह
और तुम्हारा ही भक्षण करती हैं

भिक्षुक, प्रार्थनाओं से मुक्ति के लिए
प्रार्थना करते हैं
और भविष्य के लिए मठों में
काठ के छल्ले लगाते हैं


४:

यह किसी रहस्यमयी कथा का हिस्सा नहीं
एक सच हैं की
मगरमच्छ उड़ सकते हैं
और इतना तेज़ उड़ सकते हैं
की गिद्दों और बाजों का भी शिकार कर लें
लेकिन आप उन्हें कभी
उड़ते हुए देख नहीं पायेंगे
क्यूंकि जब तक वे
आपके बीच आपकी तरह बनकर रहते हैं
उन्हें अपना पेट भरने के लिए
उड़ने की कोई जरूरत नहीं.



:


कविताओं के साथ सम्बन्धों की शरुआत
तुम्हारे सामान्य दु:खों की स्वीकारोक्ति से होगी
वे मामूली दु:ख जिन्हें इतना भोगा गया
कि वे आम हो गए
दु:ख, जिन्हें भोग कर तुम सुन्न हो गए
कविता उन्हें सुनते ही संजीदा हो जायेगी

मसलन, बताओ उसे की तुम नहीं देख पाए
कब और कैसे तुम्हारे बच्चे
किवाड़ों की सांकल पकड़ कर खड़े हुए
और चलना सिख गए
कब तुम्हारी जवान बेटी को
बिलकुल तुम्हारी तरह कुछ दांयी ओर मुड़ी
नाक वाले लडके से प्यार हो गया 
अगर तुम उससे सिर्फ इतना कहो
जीवन के इस पड़ाव में तुम अकेले रह गए
कविता, गिलहरी के बालों से बना ब्रश लेकर
तुम्हारे चहरे की झुर्रियों पर जमी धुल साफ़ करेगी
मानो तुम खुदाई में मिला मनुष्यता का एकमात्र अवशेष हो

तुम बताओ अपनी कविताओं को
कि बचपन से तुम इतने निराशावादी नहीं थे
अपने बाड़े में बोये थे तुमने बादाम के पेड़
जिन्हें अकाल वाले साल में बकरियां चर गयी
कि उस शहर में जब तुमने किराये पर कमरा लिया
मकान मालिक ने मना किया था
कि तुम खिड़कियाँ नहीं खोल सकते
जबकि कविता जानती हैं
तुम बिना दरवाजे खोले जिन्दगी गुजार सकते हो
पर खिडकियों का खुलना कितना जरूरी था तुम्हारे लिये

तुम बैठो कविता के साथ बगीचे के उस कोने में
जहाँ सबसे कम हरी घास हो
जहाँ अरसे से माली ने नहीं कि
मेहंदी के पौधों कि कटाई-छटाई
जहाँ कुर्सिओं के तख्ते उखड़े पड़े हो
उस जगह जहाँ सबसे कम चहल-पहल हो
और बताओ उसे
कि जब तुम जीने के मायने समझे
तुम अस्सी पार जा चुके थे

कविता जानती हैं
कि इन आम से दु:खों को भोगना
उतना ही मुश्किल हैं जितना
हादसे में मारे गए पिता के
अकड़ चुके जबड़े में उंगली फंसाकर गंगाजल उडेलना
और हुचक-हुचक कर रोती
विधवा हो चुकी माँ को चुप कराना

कविता जानती हैं यह तथ्य
कि सारी कविताएँ किसी अनसुने दु:ख का
विस्तृत ब्यौरा हैं. 


:

पिता के जन्म से लेकर
मेरे बुढ़ापे तक
मेरे पास एक सदी का इतिहास है
मैं आपको इसका संक्षिप्त ब्यौरा दूंगा

मेरे पिता के बचपन में भी
बरसाती पतंगे मर जाया करते थे
सरसों के दीये में गिरकर
लालटेन के गर्म शीशे से चिपक कर

मेरे बुढ़ापे में भी
बरसाती पतंगे मर रहे हैं
स्टेडियम की विशाल होलोजन बत्तियों तले
महानगरों की स्ट्रीट लाइट्स तले लाशों के ढेर पड़े हैं

विगत सालो मे रौशनी बहुत तेज़ हो गयी हैं
और बेहद बढ़ गई हैं
पतंगों के मरने की तादाद.
  

:

पहले जवान लड़े
और सरहद के दोनों तरफ
बसी बस्तियों में
लहूलुहान लाशें पहुचने लगी

अपने जवान बेटों को कन्धा देते देते
बूढ़ों ने भुला दिया घुटने का दर्द
सरहद पर अब ढाल उठाये
बुड्ढ़े लड़ रहे थे

जब बुड्ढ़े भी मर खप चुके
औरतों ने अपने केश खोले
सीने का दुप्पटा कमर पर कसा
स्तनों पर लोहे के कवच चढ़ाये
बच्चों को पीठ के पीछे बाँधा
और ये जानते हुए की
वे घर कभी नहीं लौटेगी
घर के किवाड़ खुले छोड़ सरहद की तरफ चल पड़ी

सरहद के दोनो तरफ
अब बस्तियां वीरान हो चुकी थी
और लड़ने के लिए
सिर्फ
उन रियासतों के राजा बचे थे

उन्होंने एक बंद कमरे में
शांति के संधि-पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए. 
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  1. बेहतरीन कविताएँ ! आम दुःखों को भोगने का विस्तृत ब्यौरे जैसी ! धन्यवाद जी !

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  2. बेहद उम्दा कवितायें।

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  3. उन्होंने एक बंद कमरे में
    शांति के संधि-पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए.........raungte khade karta sach

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  4. कविता जानती है यह तथ्य
    कि सारी कविताएँ किसी अनसुने दुःख का
    विस्तृत ब्यौरा हैं.

    इस अनन्य सत्य को सहजता से लिख जाने हेतु कवि का हार्दिक अभिनन्दन!

    बेजोड़, प्रभावशाली, एवं निःशब्द कर देने वाली कविताओं के कवि को प्रणाम!

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  5. मुझे तो रुला ही देता है ये नन्हा सा बच्चा अपनी कलम के झरारे तेज से...अशेष शुभकामनाये उज्जवल भवष्य की ..!!

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  6. मेरे प्रिय कवि ! अहिर्निश को बहुत शुभ कामनाएं ...तुम्हारी कविताओं की तारीफ में शब्द हल्के पड़ जाते हैं !

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  7. दिमाग के पाटे घिस गए।

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  8. Aharnish Saagar jee aapki sabhee kavitain
    Pas and aayin... Haardik Badhai. Dhanyavaad
    Arun jee. - Kamal Jeet Choudhary ( J & K. )

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  9. अरुण कहाँ से तलाश लाये आप अहर्निश को . कमाल की कविताएँ हैं . बहुत परिपक्व ..एक पुरुष को बुलबुल की तरह होना चाहिए ..
    ढेर सी बधाई कवि को .

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  10. चिन्तन पर प्रशस्त करती पंक्तियाँ..

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  11. यह कवितायेँ प्रौढ़ अवसाद से संसार को देखती हैं और इनकी चिंतनशीलता ठोस और गहरी है.हमारा सोचविचारजीवन सब इतना एन्थ्रोपोसेंट्रिक हो चला है कि इन शुरुआती कविताओं में ही मनुष्येतर सृष्टि की सहज बसावट बहुत सुकून दे रही है. अहर्निश की कुछ और कवितायेँ यहाँ भी दिखी: http://udaanantarmanki.blogspot.in/2012/05/blog-post.html

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  12. सुकून और आश्वस्ति भरी कवितायेँ मौन प्रार्थनाओं की तरह देर तक मनाकाश में विचरण करती रहती हैं.

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  13. आज सुबह से ही मेरी मरुधरा के इस अनूठे कवि की कविताओं के बिंब और पंक्तियां लगातार जेहन में गूंज कर कविता के प्रति आश्‍वस्ति के भाव से पुलकित किए हुए है। अब तक तीन बार पढ़ चुका हूं इन कविताओं को। मुझे तो इस प्‍यारे कवि पर बहुत स्‍नेह और गर्व हो रहा है। मेरी हार्दिक शुभकामनाएं हैं अहर्निश के लिए।

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  14. अहर्निश को चिन्हित करना कविता को चिन्हित करना है .. करीब दो साल पहले मेरे समीक्षा ब्लॉग 'शायकमीक्षा' के तार सप्तक के लिए जब मैंने अहर्निश को चुना तो इसी विश्वास से चुना कि कविता का यह नया स्वर सुनने के लिए है .. मैंने अमित पाण्डेय को भी इसी विश्वास से तार सप्तक के लिए चुना था .. आज खुश हूँ कि देर सही पर अहर्निश सक्रिय बिरादरी की नजर में यूँ सम्मान से आया .. ही दीजर्व्स ! .. अहर्निश की प्रशंसा से मुझे भी सर्टिफिकेट मिला कि मेरी कविता समझ और तमीज को घुन नहीं लगा है .. शुक्रिया अहर्निश यह बढ़िया अहसास मुझे देने के लिए .. कीप रोक्किन !

    अंतिम कविता पसंद आई मुझे .. बेहतरीन !

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  15. बहुत ही अर्थवान कवितायेँ ...पतिंगों वाली कविता रोमांचित करती है | अहर्निश को इन कविताओं के लिए बधाई !

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  16. सभी कवितायें बेहतरीन...खास कर अंतिम की भी अंतिम दो पंक्तियाँ तो ...वाह !!...अहर्निश को काफी समय से फेसबुक के जरिये पढ़ रही हूँ...बहुत संभावनाएं हैं अहर्निश में....उज्जवल भविष्य के लिए शुभकामनायें....शुक्रिया समालोचन....
    सुनीता

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  17. बहुत ही सुगठित कविताएँ । भाषा, बिंब सब उत्कृट । अहर्निश को बधाई और शुभकामनाएँ !

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  18. बहुत ही अच्छी कवितायेँ.

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  19. -: विरोधी प्रार्थनाएं टकराती हैं आकाश में :-
    कवि के विजन में सार्वभौम अट गया है। बड़ी बहिर्मुखी कविताएं लगीं। लगता है,वे दसों दिशाओं में फैले अनंत को आगे बढ़कर छू लेंगी।

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  20. अहर्निश को मैं पढ़ता आ रहा हूँ, फेसबुक के माध्यम से....सो अरूण जी को शुक्रिया कहूंगा साझा करने के लिए....बिम्बों के मामले में कहूँगा की यह यह नए जेनरेशन के साथ नए बिम्बों का पदार्पण है.

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  21. अहर्निश को जब भी पढ़ा है मन एक आश्वस्ति के भाव से भर जाता है, इनकी कविताओं का फ़लक इतना विस्तृत है, बिंबों की संरचना में इतनी ताजगी है कि ये कवितायें देर तक साथ चलती हैं.....इनकी कवितायें मैंने काफी पहले अपने ब्लॉग पर भी साझा की थी.....मेरी अहर्निश को बधाई एवं शुभकामनायें...खूब लिखें और अपनी पहचान सुनिश्चित करें ......(साथ ही बिंबों को लेकर अनघ का वह स्टेटस भी याद करें जिस पर हम सभी एकमत हुये थे).......स्नेहाशीश अहर्निश .......

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  22. कविता जानती हैं यह तथ्य
    कि सारी कविताएँ किसी अनसुने दु:ख का
    विस्तृत ब्यौरा हैं'.....आपकी रचनाये सच में अनसुने दुःख की विस्तृत ब्यौरा है !शुभकामनाये!

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  23. शानदार शिल्प में एक स्वतंत्र ब्रह्मांड की रचना कर रहे हैं आप । शेयर करने के लिए अरुण जी को साधुवाद !

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  24. बहुत ही अच्छी कवितायें हैं! विशेषकर भाषा में अजब सा परेशान करने वाला तत्व है.
    अहर्निश भाई को बधाई और अरुण सर को धन्यवाद!

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  25. behtariin kavitayen ...kuchh itani maarak ki bolati band kar den...ahrnish apni shaandaar kavitayon ke liye jaane jaate hain..ek saath unki kavitayon k itane rang ...badhaai ahrnish.....

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