मैं कहता आँखिन देखी : एलिस मुनरो





















कनाडा की रहने वाली कथा लेखिका एलिस मुनरो (जन्म:१९३१) को २०१३ के साहित्य का नोबल पुरस्कार दिया गया है. उन्हें २००९ का  Man Booker International Prize भी प्राप्त है. उन्हें कनाडा का चेखव कहा जाता है.

Nobelprize.org के लिए एडम स्मिथ ने एलिस मुनरो का टेलीफ़ोन से साक्षात्कार लिया है. लेखिका और अनुवादक सरिता शर्मा ने इसका हिंदी में अनुवाद किया है. फिलहाल यह साक्षात्कार पढ़िए और सरिता शर्मा को समय से किये गए उनके इस  अनुवाद कार्य के लिए धन्यवाद दीजिए.

समालोचन पर एलिस मुनरो से सम्बन्धित और भी सामग्री शीघ्र दी जाएगी.
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लेखक को अपनी नवीनतम पुस्तक सबसे अच्छी लगती है :
 एलिस मुनरो               


[एडम स्मिथ] नमस्कार, मैं एडम स्मिथ बोल रहा हूँ.
[ एलिस मुनरो] नमस्कार एडम !

[एडम स्मिथ] नमस्कार,  क्या मैं एलिस मुनरो से बात कर रहा हूँ?
[ एलिस मुनरो] हाँ, एलिस मुनरो बोल रही हूँ. मैं आपकी शुक्रगुजार हूँ. यह मेरे लिए बहुत ख़ुशी की बात है. यह लघु कहानी के लिए भी गौरव की बात है .

[एडम स्मिथ] आप सच कह रही हैं और बदले में हम आपको बधाई देते हैं. आज का दिन अद्भुत है.
[एलिस मुनरो]  हां,बहुत- बहुत धन्यवाद.

[एडम स्मिथ] आपने  यह  खबर कहाँ सुनी?
[ एलिस मुनरो] याद करती हूँ,  मैं आज सुबह - सुबह घूम रही  थी.  मैंने  यह खबर पहली बार कैसे सुनी? (कमरे में साथ बैठी बेटी जेनी की ओर मुखातिब होकर कहा) ... ओह , प्रेस ने मुझे फोन किया.

[एडम स्मिथ] और आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या थी?  क्या आपको याद है ? 
[एलिस मुनरो ] अविश्वास (हंसते हुए) मैं सच में विश्वास नहीं कर पायी, मैं इतनी खुश हुई, और मैं अभी तक खुशी से बाहर नहीं निकल पाई हूँ..

[एडम स्मिथ] आपने चार दशकों से अधिक अरसे में बहुत ज्यादा लेखन किया है.
[एलिस मुनरो]  हाँ मैंने बहुत ज्यादा लिखा है. लेकिन आप जानते हैं चूंकि मैं आम तौर पर  कहानी विधा में लिखती हूँ, मुझे लगता है यह सम्मान मिलना बहुत बड़ी बात है .

[एडम स्मिथ] आप सही कह रही हैं,
हाँ, वास्तव में यही हुआ है. आप शुरू से आखिर तक एक ही तरह की लेखक रही हैं?  क्या आपको लगता है कि आपमें बदलाव आया है? 
[एलिस मुनरो] वैसे जहाँ तक मैं आपको बता सकती हूँ, मुझमें बहुत ज्यादा बदलाव नहीं आया है. लेकिन मुझे लगता है कि इस  सवाल का जवाब कोई और बेहतर दे सकता है.

[एडम स्मिथ]  और पुरस्कार मिलने से आपकी किताबों के नए पाठकों में बहुत बढ़ोतरी हो जाएगी.
[एलिस मुनरो]  हां,मैं उम्मीद करती हूँ कि ऐसा हो, और मैं चाहती हूँ कि यह सिर्फ मेरे लिए न हो , लेकिन सामान्य रूप में कहानी के लिए ऐसा  हो. क्योंकि आप जानते हैं, कि इसे यह कहकर नजरंदाज किया जाता है कि कहानियां लोग अपना पहला उपन्यास लिखने से पहले लिखते हैं. और मैं इसे बिना इस  दुमछल्ले के प्रमुखता दिलाना चाहूंगी कि उपन्यास लिखना जरूरी है.

[एडम स्मिथ] और जो आपकी रचनाओं के बारे में नहीं जानते है, उन लोगों के लिए, आप कौन सी किताब पढने से शुरुआत करने की सिफारिश करेंगी ?
[एलिस मुनरो] हे भगवान! मुझे नहीं पता, मैं नहीं बता सकती ... लेखक को हमेशा कम से कम मुझे क्या अपनी  नवीनतम पुस्तक सबसे अच्छी लगती है,कम से कम मुझे मैं तो ऐसा मानती हूँ. इसलिए मैं चाहूंगी की वे मेरी नवीनतम पुस्तक के साथ मुझे पढना शुरू करें .

[एडम स्मिथ] तो उन्हें ‘डियर लाइफ’ के साथ शुरूआत करनी चाहिए?
[एलिस मुनरो ] ठीक है, एक तरह से,  हाँ , मगर फिर मुझे उम्मीद है कि वे उसके बाद मेरी और किताबों को भी पढेंगे.

[एडम स्मिथ] और निश्चित रूप से. हर कोई इस तथ्य के बारे में बात कर रहा है कि इस साल की  शुरूआत में आपने लिखना बंद कर देने की  घोषणा की थी,  और हर कोई कह रहा है " हो सकता है कि इससे  उन्हें फिर से लिखना  शुरू करने के लिए प्रोत्साहन मिले." 
[एलिस मुनरो ] (हंसते हुए) वैसे मैं कई सालों से ऐसा करती  रही हूँ. मेरे विचार से मैं लगभग बीस की थी,तब से लिखती और प्रकाशित होती रही हूँ और जब तब मेरी कोई न कोई रचना प्रकाशित होती रहती थी – मगर काम करते -करते लम्बा अरसा गुजर गया और मुझे लगता है अब वक्त आ गया है थोडा आराम करूँ. लेकिन इससे मेरा  दिमाग बदल सकता है.(हंसते हुए)

[एडम स्मिथ] एक रोमांचक बयान है! इससे लोगों में हलचल मचेगी.
(समवेत हंसी)

[एडम स्मिथ] वाह! तो, मुझे लगता है कि आप इतने सारे लोगों से बात करने के बाद थक गयी होंगी इसलिए  हम किसी और अवसर पर आपसे जरूर बात करना चाहेंगे.  
[एलिस मुनरो]  हां दरअसल ऐसा करना अच्छा होगा मैं क्योंकि मैं अब कुछ थक गयी हूँ और उनींदी हूँ  और क्या पता मैं क्या कह दूँ!

[एडम स्मिथ] (हंसते हुए) ठीक है,  हमें इस उत्तेजना के  शांत होने तक इंतजार करना होगा, और फिर ...
[एलिस मुनरो ] ठीक है .

[एडम स्मिथ] आपसे  बात करके बहुत खुशी हुई , आपका तहेदिल से शुक्रिया . 
[ एलिस मुनरो] शुक्रिया अलविदा.

[एडम स्मिथ] अलविदा, अलविदा .
(Nobelprize.org  से साभार )



{एलिस मुनरो के निम्न कहानी संग्रह प्रकाशित हैं -Dance of the Happy Shades (1968),Lives of Girls and Women ( 1971),Something I've Been Meaning to Tell You (1974),Who Do You Think You Are? (1978)The Moons of Jupiter( 1982) The Progress of Love – (1986) Friend of My Youth (1990) Open Secrets (1994) The Love of a Good Woman (1998) ,Hateship, Friendship, Courtship, Loveship, Marriage ( 2001), Runaway (2004),The View from Castle Rock (2006),Too Much Happiness (2009),Dear Life ( 2012) आदि}

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सरिता शर्मा
12/08/1964
पत्रकारिता, फ्रेंच, क्रिएटिव राइटिंग और फिक्शन राइटिंग में डिप्लोमा  आदि
कविता संग्रह - सूनेपन से संघर्ष., आत्मकथात्मक उपन्यास: जीने के लिये, अनूदित पुस्तकें : रस्किन बोंड की पुस्तक स्ट्रेंज पीपल,स्ट्रेंज प्लेसिजऔर रस्किन बोंड द्वारा संपादित क्राइम स्टोरीजका हिंदी अनुवाद.
पत्र पत्रिकाओं में कविताएँ, कहानियाँ, समीक्षाएं आदि प्रकाशित
नेशनल बुक ट्रस्ट में 2 अक्तूबर 1989 से  4 अगस्त  1994 तक संपादकीय सहायक.
सम्प्रतिराज्य सभा सचिवालय में सहायक निदेशक के पद पर कार्यरत.      

मोबाइल: 9871948430

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  1. एलिस मुनरो के जीवन से मन में 'मदर इंडिया' या 'मदर करेज' की छवि उभरती है.अत्यधिक संघर्षमय जीवन में रचनात्मक बने रहना बहुत बड़ी उपलब्धि है. उनकी कहानियां मन की गुत्थियों को दर्शाती हैं मगर शैली सहज और प्रवाहमय है.

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  2. साक्षात्कार पढ़ा ,सरिता आप रचनाशील रहें .
    मुनरो को कहाँ से पढना शुरू करूँ ?हाँ,डिअर लाइफ से ही .
    उनके प्लाट मुझे फंसाते हैं .वे अचानक अपना काम कर रहे होते हैं .वहां अचानक चीज़ें बदल जाती हैं ,अचानक जिंदगियां आती हैं और अचानक उनका प्रस्थान हो जाता है .विखंडन और पूर्वाभास ,अनहोनी और अलगाव सब कथा के वातावरण में एक दुनिया में दूसरी दुनिया और फिर अनेक-अनेक दुनियां का निर्माण करते चलते हैं .
    शुक्रिया सरिता .शुक्रिया अरुण .

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  3. http://hindibloggerscaupala.blogspot.comपर आपकी इस पोस्ट को शामिल किया गया हैं कृपया अव्लोकनार्थ पधारे

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  4. thanks Sarita ji....for translating alice Munro's interview.

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  5. पुरस्कार मिलना भी एक सूचक है महत्त्व जानने का

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  6. जुरूर..... पुरस्कार मिलना भी एक सूचक है ...महत्त्व जानने का लेकिन ..पुरस्कार ही एकमात्र कसौटी नहीं है ...... कभी नहीं अगर प्रकाश है... तो फ़ैल कर प्रकाशित करेगा, सुगंध है... तो बिखरेगी और ...लेखन में दम है तो ....अवश्य पढ़ा जायेगा ...........बेशक महात्मा गाँधी को नोबेल नहीं मिला तो उनकी महानता में कौन सी कमी आ गयी ...हम किसको कितना महत्व देते हैं इसकी बात है और फिर सरस्वती के साधक को पुरस्कार से क्या प्रयोजन .....?

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  7. सरिता जी,

    बहुत ही अच्छी रही ये बातचीत और आपका
    अनुवाद …एलिस मुनरो की सहजता एक सादगी
    सी दिल को छुए… बस उनके उत्तर पढ़ते रहे…
    आपके अनुवाद में ताज़गी और लालित्य दोनों
    हैं…

    timely ये साक्षात्कार आपसे मिला उसकी ख़ुशी
    है… धन्यवाद

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