विष्णु खरे : सत्ता-एक्टर-मीडिया भगवान, बाक़ी सब भुनगों समान









'यदि उसे (सोनम) भी हेमा मालिनी के साथ अस्पताल ले जाया जाता, तो उसकी जान बच जाती'
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मशहूर अभिनेत्री और सांसद हेमामालिनी की कार दुर्घटना की खबरे सबने पढ़ी और तस्वीरें देखीं, पर यह सिर्फ इतना भर नहीं था. इस में एक बच्ची की जान भी गयी. ताकत, सत्ता, पहुंच और लोकप्रियता के आगे एक बेनाम बच्ची की क्या हैसियत ?
विष्णु खरे ने जो नैतिक और कानूनी सवाल उठाये हैं, उनके उत्तर नहीं हैं, अब हम सिर्फ देखते हैं, सिर्फ.    


सत्ता-एक्टर-मीडिया भगवान, बाक़ी सब भुनगों समान 
विष्णु खरे 


कोई चालीस बरस पहले वह एक मस्नूई गाँव रामगढ़ में अपना खड़खड़िया ताँगा चलाती थी जिसमें धन्नो नामक एक कुपोषित और बहु-प्रताड़ित गंगा-जमुनी घोड़ी जुती रहती थी,सवारी के नाम पर दो मुस्तंडे हमेशा बैठे दीखते थे,जिनमें से एक के साथ बाद में उसने दो बार शादी की. बसन्ती अब मथुरा-वृन्दावन से भाजपा एम पी है – उसका बादाख़ार ख़ाविन्द वीरू भी भुजिया-भूमि बीकानेर से रहा – ताँगा-घोड़ी रामगढ़ में ही छूट गए और अब वह शोफ़र-ड्रिवन मर्सेडीस में चलती है.

एक मंदिर-दर्शन से जयपुर जाती  हुई सांसदा हेमा मालिनी की विश्व  में एक सबसे महँगी इस लिमेजीं  और एक खंडेलवाल परिवार की निस्बतन ‘’मामूली’’ गाड़ी मारुति आल्टो के बीच राजस्थान के दौसा के पास 2 जुलाई रात नौ बजे हुई भयानक टक्कर में परिवार की प्यारी छोटी बेटी सोनम की मृत्यु हो गई और अन्य सभी सदस्य, मुखिया हनुमान (हर्ष?) खंडेलवाल, दो महिलाएँ और सोनम का 4 वर्षीय बड़ा भाई सौमिल, जिसकी हालत गंभीर बताई जा रही है, घायल हुए. हम नहीं जानते कि खंडेलवाल परिवार का पेशा या सामाजिक दर्ज़ा क्या है,लेकिन मध्यवर्गीय से कम क्या होगा.

चित्रों में हेमा मालिनी के चेहरे से साफ़ है कि उन्हें दाहिनी आँख के ऊपर इतनी चोट तो आई है कि उससे खून बहा है. उन्हें भाजपा का शायद एक स्थानीय विधायक, जो पता नहीं कहाँ से नुमूदार हो गया, उनके साथ यात्रा कर रहा एक सहायक, और उनकी मर्सेडीस का ड्राइवर तुरंत जयपुर के सबसे बड़े निजी अस्पताल फ़ोर्टिस ले गए जहां उन्हें चोट पर टाँके लगाए गए और नाक का छोटा ऑपरेशन किया गया. उन्हें कुछ और भी चोटें आई हैं लेकिन वह सामान्य बताई जा रही हैं जिनसे उनकी जान को कोई ख़तरा नहीं है. राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे वहाँ तत्काल पहुँच ही गई थीं.

शायद मेरे सपनों में कोई खोट हो, लेकिन हेमा मालिनी मुझे कभी इतनी सुन्दर नहीं लगीं कि उन्हें ‘ड्रीम गर्ल’ कहने की हिम्मत जुटा सकूँ और उनका भयावह, हास्यास्पद ‘हिंदी-उर्दू’ उच्चारण उनकी खराब एक्टिंग को बद से बदतर बना देता था इसलिए उनकी फिल्मों ने भी मुझे दूर ही रखा. धर्मेन्द्र के साथ उनके निकाह ने भी मेरी कोई मदद न की. उन्होंने यह भी कहा था कि वृन्दावन में विधवाओं के आने पर नियंत्रण होना चाहिए. और मेरे लिए अब तो वह ‘नाइटमेअर नानी’ भी हो चुकी हैं. लेकिन इस पब्लिक, और ख़ास तौर पर इस मुद्रित और दृश्य-श्रव्य मीडिया, का कोई क्या करे ?

क्या यह राष्ट्रीय शर्म की बात नहीं कि इस हादसे को महत्व इसीलिए दिया गया कि इसमें हेमा मालिनी मुश्तमिल थीं और उसमें भी सर्वाधिक प्रचार उन्हीं का किया गया और हो रहा है ? उस परिवार का, जिसकी एक नन्हीं बच्ची मारी गई, ज़िक्र अव्वल तो हुआ ही नहीं,फिर कुछ इस तरह हुआ कि ऐसी दुर्घटनाओं में इस तरह का ‘’कोलैटरल डैमैज’’ तो हुआ ही करता है. अभिनेत्री-सांसदा की भौंह से उनके चेहरे और कपड़ों तक बहता खून एक बच्ची की मृत्यु से कहीं ज़्यादा संवादोचित, प्रसारणीय, और 66 वर्ष की उम्र के बावजूद, एक रुग्ण प्रकार से उत्तेजक और चक्षु-रत्यात्मक (voyeuristic) था, कुछ-कुछ द्यूत-सत्र में द्रौपदी के लाए जाने जैसा. करोड़ों आँखों ने वाक़ई इतनी बड़ी ऐक्ट्रेस को रक्त-रंजित देखा, बार-बार देखा और देखते रहेंगे.

बेशक़ वह खून था और खून का मेक-अप नहीं, बेशक़ उन्हें कोई अंदरूनी गंभीर चोट भी हो सकती थी. माथे का इस तरह टकराना, नाक से खून बहना, कभी-कभी संगीन भी हो उठता है.यूँ भी ऐसे हादसों के फ़ौरन बाद आदमी आपादमस्तक हिल जाता है.  उनकी हैसियत को देखते हुए तो फोर्टिस भी बहुत बड़ा अस्पताल नहीं है. लेकिन कुछ सवाल हैं जो हमेशा पूछे ही जाना चाहिए, भले ही मामला प्रधानमंत्री का ही क्यों न रहा होता. अभिनेत्री-सांसदा की कार में उनकी मौजूदगी क़ानूनी रूप से केन्द्रीय महत्व की है.  उनसे गवाही ली ही जाएगी.  क्या उन्हें अस्पताल ले जाए जाने से पहले पुलिस घटनास्थल पर पहुँच चुकी थी ? उन्हें प्राथमिक उपचार वहीं किस कारण नहीं दिया गया ? उन्हें अस्पताल ले जाए जाने की मंज़ूरी किसने दी ? उनके साथ कोई पुलिसकर्मी अस्पताल क्यों नहीं जा सका और वहाँ तैनात क्यों नहीं किया गया ? उनके ड्राइवर को, जिसे बाद में संगीन इल्ज़ामों में गिरफ्तार कर लिया गया,  मौक़ा-ए-वारदात छोड़कर उनके साथ अस्पताल जाने की ज़रूरत क्या थी और उसकी इजाज़त उसे किसने दी ? क्या उसकी औपचारिक अल्कोहल जाँच हुई ? पीछे बैठी सांसदा लहूलुहान हुईं, स्टीअरिंग पर बैठे ड्राइवर को कोई भी चोट क्यों नहीं आई ? 150 किलोमीटर रफ़्तार पर टकराई मर्सेडीस की सुरक्षा हवा-थैलियाँ क्यों नहीं खुलीं ? अभिनेत्री-सांसदा का निजी सहायक, जो कार में उनके साथ बताया गया था और इस तरह एक ‘मैटेरियल विटनैस’ है, कौन है और अब कहाँ है ? दूसरे चालक खंडेलवाल के साथ पुलिस ने क्या बर्ताव किया ?

यह भी पूछा जा रहा है कि यदि अभिनेत्री-सांसदा बिना स्ट्रेचर या दूसरे सहारे के ‘फोर्टिस’ पहुँच सकीं तो वह शोक प्रकट करने कम-से-कम खंडेलवाल परिवार की दोनों घायल महिलाओं के पास क्यों नहीं गईं ? उन महिलाओं में से एक ने यह भावुकतापूर्ण दावा किया है कि यदि एक्ट्रेस-एम.पी. अपने साथ घायल बच्ची को फोर्टिस ले जातीं तो वह बच जाती. लेकिन  क्या उन्होंने भाजपा कार्यकर्ताओं को  कम-से-कम यह निर्देश ही दिए कि खंडेलवाल परिवार की हर मुमकिन मदद की जाय ? वसुंधरा राजे से अनुरोध किया कि जाते-जाते खंडेलवाल-परिवार को भी देखती जाएँ और उन्हें हर जायज़ मदद का आश्वासन दें ?

इस दुर्घटना के लिए सांसदा के ड्राइवर और आल्टो के मालिक-चालक के बीच कौन कुसूरवार है यह तो सलमान खान के मामले की तरह स्थायी-अस्थायी तौर पर अदालत के फैसले की आमद पर ही जब तय होगा तब तय होगा.  मर्सेडीस-चालक को इसलिए गिरफ्तार किया गया है कि पुलिस ने फ़िलहाल उसे अन्य आरोपों के अलावा सोनम की मौत के लिए ज़िम्मेदार माना है. लेकिन इस बिना पर हम उसे (और मालकिन हेमा मालिनी को) मुजरिम नहीं मान सकते. उसे ज़मानत पर छूटना ही था. गाड़ियों की टक्कर विचित्र ढंग से हुई लगती है – मर्सेडीस के बोनेट का बायाँ हिस्सा गया है तो आल्टो के बोनेट का दायाँ.  हो सकता है पुलिस बाद में मुकर जाय लेकिन वह कह चुकी है कि मर्सेडीज़ बहुत तेज़ रफ़्तार में थी.  न हो तो  उसे रखने का फ़ायदा ही क्या है ? लेकिन यह सच है, भले ही अजब इत्तेफ़ाक़ हो, कि सरकार कोंग्रेस की हो या भाजपा की, जिनके पास सत्ता, पैसा, अधिकार और रसूख़ हैं, भले ही वह ग्राम पंचायत के नव-करोड़पति सरपंच ही क्यों न हों जिन्हें अब प्रेमचंद भी पहचानने से डरेंगे, उनकी गाड़ियों से होने वाली मौतों के आँकड़े बढ़ते जा रहे हैं. अभी चंद रोज़ पहले मध्यप्रदेश के एक मंत्री की गाड़ी ने सोनम से कुछ बड़ी एक बदकिस्मत बच्ची को रौंद दिया था. मुम्बई में भी हाल ही में एक एक्टर की गाड़ी से मानव-मृत्यु की मिलती-जुलती घटना हुई थी.किस किस को याद कीजिए,किस किस को रोइए.

संभव है अभी मीडिया दर्ज करे कि किस तरह धरमिन्दर पापाजी अपनी दूसरी जनानी को अपने पहले बेटों और दूसरी बेटियों के साथ देखने फ़ोर्टिस आएँ,जहाँ ‘एडमिट’ होना अब और लोकप्रिय और प्रतिष्ठित हो सकता है. अगर अभिनेत्री-सांसदा जल्दी ‘डिस्चार्ज’ नहीं हुईं, जिसमें अस्पताल का फ़ायदा-ही-फ़ायदा है, तो मुम्बई की इंडस्ट्री से मिज़ाजपुर्सिंदों का ताँता लगा रहेगा. हम सहज ही समझ सकते हैं कि हमारा मीडिया इस ऑडियो-विज़ुअल-प्रिंट लोंटरी से कितना कृतकृत्य, कितना धन्य होगा. खूब ‘स्पिन’ दिया जा सकता है इसे. कुछ बदल कर गा भी सकते हैं  :‘’कोई मर्सेडीज़वाली जब टकराती है तो और मुफ़ीद हो जाती है’’.
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(विष्णु खरे का कालम, नवभारत टाइम्स मुंबई में आज प्रकाशित, संपादक और लेखक के प्रति आभार के साथ.) यह टिप्पणी ''समालोचन'' में ही अविकल प्रकाशित हुई है. प्रिंट-मीडियम ''नभाटा'' में शायद स्थानाभाव या पेज-मेक-अप की तकनीकी समस्याओं के कारण मूल का अंतिम पैरा काट लिया गया.
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9833256060

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  1. इतनी अच्‍छी,पठनीय टिप्‍पणी लिखने वाले खरे साहब उस बच्‍ची के माता पिता से मिलने, क्षतिपूर्ति दिलाने के लिए कानूनी पहल आदि को लेकर बच्‍ची के अभिभावकों की सहायता करने नहीं ही गये होंगे। एक संवेदनशील टिप्‍पणी लिखकर अपनी रचनात्‍मकता निखारने का प्रलोभन त्‍याग कर वे क्‍या ,कोई भी लेखक बच्‍ची के घर नहीं जाता। हमारे देश में किसी भी लेखक कवि और विचारक नें ऐसी किसी परम्‍परा की नींव नहीं रखी। यह सब,उनके संगठनों ,या वे जिन संगठनों से जुडे होते हैं,उसके निचले तबके के सदस्‍यों का काम माना जाता है। घटनास्‍थलों तक जाना,पीडित के बचाव में सशरीर सहयोग करना हमारे लेखकों का काम नहीं है। वे सिर्फ धिक्‍कार की भाषा जानते हैं। मुझे खरे साहब की इस तत्‍परता में उनका पत्रकारीय आचरण भर दखिता है।

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  2. यह एक बेहतरीन लेख है, जो दरअसल, मीडिया को कटघरे में खडा करता ..!

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  3. नूतन गैरोला7 जुल॰ 2015, 7:36:00 pm

    sach yah bahut dukhad baat hai ki actress kee chot ke aage bacchi ka sadaa ke liye chalaa nagany saa rahaa ... jabki us parivaar kee peeda kaa koi ant na hoga ..

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  4. What an wrotton attitude that Doctor had by not taking the injured girl a log with him. HE has broken his oath of a being a Doctor. Nobody will ever forget him especially the girls parents.

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