समीक्षा
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इन दिनों हिंदी कविता का परिदृश्य आशा और उत्साह से ओतप्रोत
है, भारतीय भाषाओं के बीच
संभवतः हिंदी में सबसे विलक्षण कविता लिखी जा रही है. स्वनाम धन्य कवियों की तो
अपनी स्थिर दुनिया है ही, नए कवि भी भरपूर
नएपन और परिपक्वता के साथ कविकर्म में जुटे हैं. पत्र-पत्रिकाओं के साथ साथ वैब ने
भी उन्हें महत्वपूर्ण मंच प्रदान किया है और उनकी रचनाएं अनेक सुधी पाठकों तक
पहुँच रही हैं. प्रकाशन तंत्र की बहुआयामी उपस्थिति ने हिंदी में कविता के क्षेत्र
को सर्वाधिक पुष्ट किया है. हालाँकि इन
दिनों जितनी अधिक मात्रा में कविता लिखी जा रही है, कागज़ या वैब पर प्रकाशित हो रही है उसमें से अधिकांश को आज
की समय सापेक्ष कविता कहना मुश्किल है. फिर भी कविता की भीड़ के बीच भी कुछ कविताएं,
कुछ कवियों के चेहरे भविष्य के प्रति आश्वस्त
करते हैं. नए उदीयमान कवियों में अंजू शर्मा भी एक ऐसा ही नाम है. वैब पर ऐसे
पाठकों की संख्या भी कम नहीं है, जो कविता की समझ
रखते हैं, उसे खोज कर चाव से पढ़ते
हैं. अंजू की कविताएं मैंने पहली बार वैब पर ही पढ़ी थीं और मैं उनसे प्रभावित भी
हुआ था. वर्ष 2012 मे उन्हें
इला-त्रिवेणी सम्मान से सम्मानित किया गया और बाद में उनकी कविताएं पढ़ने सुनने का
मुझे लगातार मौका मिलता ही रहा है.
2014 का वर्ष हिंदी में नव-कवियों का वर्ष रहा है.
इस वर्ष में नवोदित कवियों के बहुत सारे
संकलन हमारे बीच आए हैं. नए प्रकाशक भी सामने आए हैं जो कविता भी छाप लेते हैं -
कहीं संकलन का चयन प्रकाशक करते हैं तो कहीं कवि उसे हर कीमत पर छपा देखना चाहते
हैं. खराब संकलनों की अचानक आई इस बाढ़ के बीच भी कुछ संकलन बहुत महत्वपूर्ण एवं
पठनीय पाए गए हैं, उनमें अंजू शर्मा का कल्पनाओं से परे का समय भी सम्मिलित है. इस संकलन का प्रकाशन बोधि
प्रकाशन, जयपुर द्वारा किया गया है.
इस संकलन की कविताओं को समझने से पहले अंजू शर्मा के
व्यक्तित्व और चिंतंशीलता का आकलन कर लिया जाना भी ज़रूरी है. अंजू शर्मा सामान्य
मध्यवर्गीय परिवार से आती हैं जहाँ न सुविधाओं की भर-मार है और न मूल-भूत
आवश्यकताओं की पूर्ति का अभाव. बड़ा सरल-सा दिखने वाला जीवन, जिसमें करियर की आपाधापी नहीं है और नपी-तुली
महत्वाकांक्षाएं हैं. अंजू एक जिम्मेवार पत्नी हैं और दो बेटियों की स्नेहशील माँ
भी. उसके भी लोगों से वैसे ही सम्बंध हैं जैसे प्रायः हम सब के होते हैं. हाँ,
उसका
संवेदनशीलता का स्तर ज़रूर अधिक है जो उसे तेरह साल की उम्र से ही पढ़ने और
लिखने के लिए प्रेरित करता रहा है. इस संकलन की भूमिका में बड़ी साफगोई के साथ अंजू
कहती हैं --- तमाम स्मृतियों/ और विस्मृतियों के बीच के/ द्वंदात्मक संघर्षों से
उपज आए/ परिचित पलों का नाम ही/ मेरे लिए कविता है! उसके लिए कविता मुक्ति है,
सद्गति है, संभावना भी है.
अंजू की कविताओं में हमारे समाज के वे सभी रूपक दृष्टिगोचर
होते हैं जो इन दिनों चर्चा में हैं और हम सब उन्हें भोगने के लिए अभिशप्त हैं.
उसकी कविताओं में सशक्त नारी बोध है जो अपने आसपास के परिवेश के प्रति चिंतित भी
है पर धैर्य के साथ उन अत्याचारों से जूझने की शक्ति भी रखता है. एक माँ के रूप
में, वह बेटी की सुरक्षा के
लिए चिंतित होते हुए भी उसे समर्थ बनाना चाहती है. अंजू विचार-धारा के स्तर पर
रूढिवादिता का विरोध करती है, वह स्वयं को मनु
का वंशज बताए जाने का जम कर प्रतिकार करती है, अंजू का यह सोच उसके ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने की भोगी
हुई त्रासदी का ही परिणाम है. अंजू स्त्री मुक्ति की पक्षधर है, परिवार व्यवस्था में उसका पूरा विश्वास है पर
वह नहीं चाहती कि स्त्री का सम्मान महज इसलिए न किया जाए कि वह पुरुष प्रधान समाज
में मात्र स्त्री है. वह उन स्त्रियों को लेकर भी चिंतित है जिनका समाज में लगातार
शोषण हो रहा है. अंजू की कविताओं में प्रेम की अनेक छटाएं भी है, सौंदर्य भी है और अपने परिवेश के प्रति कलात्मक
जुड़ाव भी. इस संकलन की कविताएं एक ऐसे जीवन संघर्ष की चित्र-वीथियाँ हैं जो लगातार
शब्द-यात्रा में रहते हुए सामाजिक सरोकार की सटीक संरचना में लगा है. यह स्पष्ट
करना चाहूँगा कि अंजू की कविताएं रूढ़ अर्थों में स्त्री विमर्श की कविताएं नहीं
हैं, ये कविताएं स्वंत्र चिंतन
लिए एक आस्थावादी पारिवारिक नारी की कविताएं हैं जो स्त्री की पक्षधर होते हुए भी
पुरुष विरोधी नहीं है.
संकलन की शुरुआत समाज के प्रति एक बहुत ही आस्थावान कविता
के साथ होती है जिसका शीर्षक है तीलियाँ – रहना ही होता है हमें/ अनचाहे भी कुछ लोगों के साथ/ जैसे माचिस की डिबिया में
रहती हैं/ तीलियाँ सटी हुई एक दूसरे के साथ.
अंजू जानती है, तीलियों का धर्म
जलना ही होता है, पर यह उनके वश
में नहीं होता कि उन्हें कब जलना है. एक अन्य महत्वपूर्ण कविता है – मुआवजा – वह कहती हैं अगर कविता के बदले मुआवजा दिए जाने का चलन हो
तो – आपके लिए यह हैरत का सबब
होगा/ अगर मैं माँग रख दूँ कुछ डिब्बों की/ जिनमें कैद कर सकूँ उन स्त्रियों के
आँसू/ जो गाहे बगाहे/ सुबक उठती हैं मेरी कविताओं में/ हाँ, मुझे उनकी खामोश,/ घुटी चीखों वाले डिब्बे को/ दफ़्न करने के लिए एक माकूल/ जगह की भी दरकार है.
नारी जीवन के यथार्थ से लेकर अपने सामाजिक समायोजन तक सफर करते हुए अंजू इसी दर्शन
को अगली कविताओं में बुनते चली जाती है.
प्रेम भी अंजू की कविताओं का एक महत्वपूर्ण विषय है. पर
इसमें ना अल्हड़पन है और न बेचैनी. बिछड़े दोस्त के लिए एक कविता की पंक्तियाँ हैं -
तुम्हारे बैग को गर कभी टटोला जाता/ तो आत्मीयता, परवाह और अपनेपन के/ खजाने की चाबी का हाथ लगना / तय ही तो
था,/ पर दोस्ती के इस खुशनुमा
सफर/ में नहीं था कोई भी ऐसा स्टेशन/ जिसका नाम प्रेम होता. एक अन्य कविता जिसका
नाम ही प्रेम कविता है कहती है- कब से कोशिश मैं हूँ / कि आंख बंद होते ही/ सामने
आये तुम्हारे चेहरे/ से ध्यान हटा / लिख पाऊँ/ मैं भी/ एक अदद प्रेम कविता. ये
कविताएं साधारण प्रेम कविताएं नहीं हैं बल्कि हमें एक सम्मोहक परिपक्वता से रूबरू
कराती हैं.
संकलनकी महत्वपूर्ण कविताओं में से एक है - हमें बक्श दो
मनु, हम नहीं हैं तुम्हारे
वंशज, यह कविता आज के समय में
ब्राह्मणों द्वारा झेले जारहे संत्रास का मार्मिक बखान करती है. वह निरंतर उस सज़ा
को भोग रही है जिसके लिए वह जिम्मेवार नहीं है - सोचती हूँ मुक्ति पा ही लूँ/ अपने
नाम के पीछे लगे इन दो अक्षरों से/ जिनका अक्सर स्वागत किया जाता है/ माथे पर पड़ी
कुछ आड़ी रेखाओं से/ जड़ों से उखड़ कर/ अलग अलग दिशाओं में/ गए मेरे पूर्वज/ तिनके
तिनके जमा कर/ घोंसला ज़माने की जुगत में/ कभी नहीं ढो पाए मनु की समझदारी. यह कविता वर्तमान समय में सामाजिक विद्वेष की
एक सभ्य-सी झलक दिखलाने का कार्य करती है.
जूता भी अंजू का प्रिय उपमान है जिसका उसने काफी प्रयोग
किया है. जूता इन कविताओं में विवेक और अनुभूति का बैरोमीटर बन कर उभरता है. जूते और आदमी – की पंक्तियाँ देखिए कहते हैं/ आदमी की पहचान / जूते से
होती है/ आवश्यकता से अधिक/ घिसे जाने पर स्वाभाविक है/ दोनों के ही मुंह का खुल
जाना. एक अन्य कविता है जूते और विचार --
कभी कभी / जूते छोटे हो जाते हैं / या कहिये कि पांव बड़े हो जाते हैं,/ छोटे जूतों में कसमसाते पाँव / दिमाग से बाहर
आने को आमादा विचारों/ जैसे होते हैं. जूतों पर ही एक अन्य कविता है – जूते सब समझते हैं - जूते जिनके तल्ले साक्षी होते हैं / उस यात्रा के/
जो तय करते हैं लोगों के पाँव,/ वे स्कूल के
मैदान, / बनिए की दुकान / और घर तक
आती सड़क / या फिर दफ्तर का अंतर / बखूबी समझते हैं / क्योंकि वे वाकिफ हैं/ उस रक्त के उस भिन्न दबाव से/ जन्मता है/
स्कूल, दुकान, घर या दफ्तर को देखकर/. उत्कृष्ट बिम्ब संयोजन
जूते के प्रतिमान को सामाजिक व्यवहारिकता के स्तर निर्धारण का प्रतिमान भी बना
देता है. इस संकलन में वैसे तो सभी कविताएं पठनीय हैं क्योंकि अंजूकविता रचने के
फन में माहिर है. फिर भी – जंगल, मृत्यु और मेरा शहर, आत्मा, डर, दुख पर लिखी गईं पाँच कविताएं तथा हथियार विशेष रूप से प्रभावित करती हैं.
यह अंजू शर्मा का पहला कविता संकलन है जो निश्चित रूप से
उन्हें हिंदी के आज के महत्वपूर्ण कवियों में स्थान दिलाता है और पाठकों की
अपेक्षा पर भी खरा उतरता है. संकलन में 60 कविताएं है जो प्रतीत होता है बहुत पुरानी नहीं हैं. इनके संदर्भ, कथ्य और शिल्प सभी आयाम ताज़गी लिए हैं. संकलन
का प्रकाशन जयपुर के बोधि प्रकाशन ने किया है, जिन्होंने हिंदी साहित्य के प्रकाशक के रूप में पिछले दो
वर्षों में सफलता के नए शिखरों को छुआ है. फिलहाल यह संकलन पेपरबैक में ही मुद्रित
हुआ है और कीमत है मात्र 90 रुपए. यदि आप सचमुच हिंदी कविता की समझ रखते हैं और
इसकी विकास यात्रा के आगे बढ़ते हुए चरणों को देखना चाहते हैं तो इस संकलन को अवश्य
पढ़े.
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राजेश्वर वशिष्ठ
09674386400/ rajeshwar_v@hotmail.com
राजेश्वर जी ने बढ़िया समीक्षा लिखी है। अंजू को फिर से बधाई।
जवाब देंहटाएंकविताएँ काफी अच्छी लगी ।
जवाब देंहटाएंराजेश्वर जी ने आश्वस्तिपूर्वक कविताओं के कथ्य का भाष्य किया है, अंजू जी को बधाई। सचमुच यह समय कल्पनाओं से परे का समय है।
जवाब देंहटाएंअपने मे परिपूर्ण बेहतरीन समीक्षा !! वैसे ये किताब ........ है भी बेहतरीन, वो अलग बात है, हर कोई अपने शब्द नहीं दे सकता :) !!
जवाब देंहटाएंराजेश्वर जी, आपने समीक्षा में ही अंजू जी से और उनके लेखन की प्रतिभा से पूरी तरह परिचित करा दिया. बधाई, आप दोनों को. कुल भूषण चौहान
जवाब देंहटाएंसुंदर समीक्षा अँजू जी को शुभकामनाऐं ।
जवाब देंहटाएंसुंदर समीक्षा
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर समीक्षा !
जवाब देंहटाएंbahut sundar sameeksha ....anju ji ki pustak padhne ki utkantha badh gyee ab to ..
जवाब देंहटाएंइस सुंदर समीक्षा के लिए एक बार फिर से राजेश्वर जी और समालोचन पर सुंदर प्रस्तुतिकरण के लिए अरुण जी का आभार.....आप सभी मित्रों का भी बहुत बहुत शुक्रिया
जवाब देंहटाएंसुन्दर समीक्षा सुन्दर कविताओं की दोनों को बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी समीक्षा
जवाब देंहटाएंसुन्दर समीक्षा सुन्दर कविताओं की दोनों को बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत जोरदार समीक्षा प्रस्तुति हेतु राजेश्वर जी को धन्यवाद
जवाब देंहटाएंअंजू को हार्दिक बधाई।
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