तीन दिवसीय ‘अखिल भारतीय हिंदी कथा समारोह’ पटना में कथाकारों, आलोचकों, श्रोताओं और दर्शकों का जमावड़ा लगा था. भूकम्प के झटकों के बीच सम्पन्न हुए इस समारोह के सभी सत्रों की रिपोटिंग की है युवा कथाकार सुशील कुमार भरद्वाज ने.
रपट
भूकंप के झटकों के बीच संपन्न हुआ अखिल हिंदी
कथा समारोह
सुशील
कुमार भारद्वाज
साहित्य
का सृजन दुःख और दर्द से ही शुरू होता है. उषा
किरण खान
ने ये बातें
अखिल भारतीय हिंदी कथा समारोह के समापन में धन्यवाद ज्ञापन में कहा. वाकई
में 25-27 अप्रैल 2015 तक
चले कथा समारोह का उद्घाटन ही भूकंपों
के जबरदस्त झटकों के बीच हुआ. परन्तु
देश के विभिन्न कोने से आये 20
प्रसिद्ध साहित्यकार, समीक्षक एवं श्रोता बाहरी झटकों से बेपरवाह हो पटना
के तारामंडल सभागार में बह रहें विभिन्न भावों की कहानियों एवं उसपर होने
वाले टिप्पणियाँ में खोये रहें. कला, संस्कृति
एवं युवा विभाग के मंत्री राम लषण राम रमण ने उद्घाटन भाषण में
फणीश्वर नाथ रेणु एवं प्रेमचंद की प्रासंगिकता की चर्चा करते हुए साहित्यकारों
का आह्वान किया कि वे ऐसी कहानी लिखें जिससे समाज में समरसता
बढे. उन्होंने
कहा कि सृजन का कार्य समाज पर प्रतिकूल प्रभाव डालने
वाला न हो. प्रो राम वचन राय ने समारोह की खासियत बताते हुए कहा कि यह अपने
तरह का एक
प्रयोग है. अब
तक हुए कथा समारोह में सिर्फ कथा पर विचार –विमर्श
होता था
परन्तु इसमें कथाकार के साथ -साथ
आलोचक भी हैं जो कि कथा पाठ पर अपनी टिपण्णी
देंगें. कहानियों
के विश्लेषण से पाठकों को समझने में आसानी होती है. विभागीय
सचिव आनंद किशोर ने इस कथा समारोह को बिहार में आयोजित होने का पहला
अवसर बतलाया.
उद्घाटन
सत्र फणीश्वर नाथ रेणु सत्र में साहित्यकार गोविन्द
मिश्र
ने ग्रामीण परिवेश में ही रची बसी कहानी “फांस” का पाठ किया. साथ
ही इस कथा की समीक्षा करते हुए साहित्यकार रवि भूषण ने बताया की
फणीश्वर नाथ रेणु ने अकेले ही उपन्यास के नकारात्मक छवि को तोड़ने में कामयाबी
पायी. इस
सत्र के अंत में उषा किरण खान की कथा “दूबधान” का कनुप्रिया
ने सफल कथा मंचन किया.
26
अप्रैल 2015 के पहले सत्र – रामवृक्ष
बेनीपुरी सत्र में प्रसिद्ध साहित्यकार
रवीन्द्र कालिया ने साम्प्रदायिकता के आवरण में लिखी कथा “गोरैया” का
पाठ किया. कथा
पाठ करने से पूर्व कालिया ने बताया कि प्रथम हिंदी
कथा समारोह जैनेन्द्र कुमार को केंद्रित करते हुए 1965 ई को कोलकाता
में आयोजित किया गया था. जिसमे जैनेन्द्र आदि के साथ वे भी उस कथा
विमर्श का हिस्सा बने थे. दूसरे
कथा समारोह के बारे में बताया कि यह भी
कोलकाता में ही 1980 ई में आयोजित किया गया था. उनके
साथ इस बार कृष्ण सोबती
आदि की पीढ़ी मौजूद थी. लंबे अरसे के बाद अखिल भारतीय हिंदी कथा समारोह
को एक नए रूप में आयोजित करने के लिए आयोजकों की उन्होंने सराहना की. हिंदी–उर्दू
के कथाकार जकिया मशहदी ने पहचान की संकट, बालश्रम, और
मजदूर तबके
के लोगों के सपने के बनने और टूटने की
पृष्ठभूमि में रची कहानी “छोटी रेखा –बड़ी रेखा” का
पाठ किया. वहीँ
चंद्र किशोर जायसवाल ने “भोर की ओर” कथा
में गांवों की गरीबी के बदलते मायनों को
रेखांकित करने की कोशिश की. सत्र
के समीक्षक डॉ सत्यदेव त्रिपाठी ने इन कहानियों पर अपनी बेबाक टिप्पणी
रखी. उन्होंने
कहा कि विभिन्न मौसमों के परिवेश में लिखी इन कहानियों
में जहाँ गोरैया कहानी में कथाकार गोरैया पर हावी होकर उसके सांप्रदायिक
और धर्मनिरपेक्षता की बात रखते हैं. वही
जकिया संवेदनाओ को छोटी
बड़ी करके सान्तवना देने की कोशिश करती हैं. जबकि जायसवाल
भीषण ठंड वाली
रात में रेलगाडी के चार सहयात्रियों के संवादों से गांवों में हो रहे
विकास कार्यों की चर्चा करते हैं.
राजा
राधिका रमण सत्र में ममता कालिया, मिथिलेश्वर
एवं सोमा
बंदोपध्याय ने कहानी पाठ किया. ममता
कालिया ने सुरक्षाकर्मियों की नयी जमात की बेतरतीब
होती जिंदगी पर आधारित कहानी “सुकर्मी
शेर सिंह” का पाठ किया. जबकि
कहानी पाठ से पहले अपने विचारों को व्यक्त करते हुए ममता कालिया ने बताया
कि पटना में सबसे पहले 1970 ई में शंकर दयाल सिंह ने एक छोटा सा कथा
समारोह आयोजित किया था. मिथिलेश्वर ने संवेदनहीन होते समाज को केंद्रित
करते हुए “बारिश की रात” कहानी का पाठ किया. जबकि
सोमा बंदोपध्याय ने मनुष्य एवं प्रकृति के बीच बदलते रिश्ते को
दिखने वाली कथा “सदी का
शोक” प्रस्तुत किया. सत्र
के समीक्षक प्रो तरुण कुमार ने कहा कि सबसे
बड़ी समस्या है कि हम अपने समय को नाम नहीं दे पा रहें हैं. नैतिक बुद्धि
के आभाव में हमारा युवा उपापोह की जिंदगी जीने को विवश है. दिन
के आखिरी सत्र मधुकर सिंह सत्र में हृषिकेश सुलभ ने “नदी” कहानी
में दादी
और नदी का समाज और सभ्यता से गहरा रिश्ता
बताते हुए समय के साथ हो रहे
परिवर्तन और उसके परिणाम को रेखांकित किया. रामधारी
सिंह दिवाकर ने “छोटे – छोटे बड़े युद्ध” के जरिये समाज में सामंतवादी सोच के खिलाफ हो रहे
क्रांति से श्रोताओं को परिचित कराया. उर्मिला
शिरीष
ने बदले हुए संशयपूर्ण माहौल में अकेलेपन की त्रासद झेल रही
माँ की कहानी को “राग – विराग” में रखा. सत्र
के समीक्षक ज्योतिष जोशी ने साहित्य को साहित्य का ही
विकल्प बतलाया. उन्होंने कहा कि साहित्य एक चेतना, विमर्श
और प्रतिरोध
है. सत्र
के अंत में मशहूर रंगकर्मी विभा रानी ने संजीव के लिखे “नौरंगी नटिनी” का कथा मंचन किया.
27
अप्रैल 2015 को विन्दु सिन्हा सत्र नारी को समर्पित सत्र के
रूप में देखा
गया. मुस्लिम
संप्रदाय को आतंक के रूप में देखने के नजरिये से सहमी लड़की
और माँ के समरूप अम्मी के माध्यम से एक विभेद को मिटाने की कोशिश करती
और साम्प्रदायिकता पर करारी चोट करती है अवधेश प्रीत की कहानी “अम्मी”. जबकि संतोष दीक्षित पहला चाटा, पहला
प्यार, पहला
पाठ, माँ
के साथ
खेल, तथा
माँ के हज़ार रूप जैसी छोटी छोटी कहानियों के सहारे “माँ की दुनियां की कहानी” सुनाते हैं. जय
श्री रॉय एक
अलग जोनर की कहानी “दुर्गंध” प्रस्तुत
करती हैं जो सुन्ना जैसी प्रथा की वजह से नरक बनती महिला
के जिंदगी पर आधारित है. सत्र के समीक्षक राकेश बिहारी ने इन कहानियों
पर अपनी सार्थक एवं सटीक टिप्पणी की.
सुहैल
अजीमाबादी सत्र में साहित्यकार नासिरा शर्मा ने स्पष्ट शब्दों में कहा
की कथाकार को सिर्फ कथाकार होना चाहिए – न की
महिला और दलित कथाकार. उन्होंने जीरो रोड उपन्यास के एक हिस्से
का पाठ किया था. जबकि
बलराम ने अवधी
भाषा के संवादों से पूर्ण पारिवारिक रिश्तों पर हावी पूंजीवाद के विभिन्न
आयामों को दर्शाती कथा “उसका घर” का
पाठ किया. वहीं
इंदु मौआर ने विस्थापन
के दर्द और अपनी मिटटी और लोगों से लगाव को समेटे कहानी “अपनादेश” का पाठ
किया. पद्माशा झा ने रोमांटिक तत्वों से लबरेज बिखरते प्रेम विवाह
पर केंद्रित कहानी “मौल श्री बहुत याद आएगी” सुनाया. समीक्षक खगेन्द्र ठाकुर के टिप्पणी के साथ सत्र समाप्त हुआ. इसी
समय मंच पर मज्कूर आलम के कथा संग्रह “कबीर
का मोहल्ला” का
लोकार्पण हुआ.
समारोह के अंतिम सत्र अनूप लाल मंडल सत्र में असगर वजाहत ने व्यंगात्मक कथा “गिरफ्त” का पाठ किया. वहीँ प्रेम कुमार मणि ने प्रकृति और प्रशासनिक तंत्र के बहाने “इमलियां” को प्रस्तुत किया. जबकि अमानवीयता के बीच सुखद आकांक्षा की आस पर बुनी कथा “खबर” शिव दयाल ने सुनायी. समीक्षक अखिलेश ने टिप्पणी में बिहार को प्रतिरोध की धरती बताया. इस समारोह के समापन की घोषणा प्रो राम वचन राय ने भूकंप पीड़ितों के लिएएक शोक प्रस्ताव एवं मौन के साथ की.
समारोह के अंतिम सत्र अनूप लाल मंडल सत्र में असगर वजाहत ने व्यंगात्मक कथा “गिरफ्त” का पाठ किया. वहीँ प्रेम कुमार मणि ने प्रकृति और प्रशासनिक तंत्र के बहाने “इमलियां” को प्रस्तुत किया. जबकि अमानवीयता के बीच सुखद आकांक्षा की आस पर बुनी कथा “खबर” शिव दयाल ने सुनायी. समीक्षक अखिलेश ने टिप्पणी में बिहार को प्रतिरोध की धरती बताया. इस समारोह के समापन की घोषणा प्रो राम वचन राय ने भूकंप पीड़ितों के लिएएक शोक प्रस्ताव एवं मौन के साथ की.
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