(पेंटिग : जनगढ़ सिंह श्याम )
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चंद्रेश कुमार छतलानी सॉफ्टवेयर डेवलेपर हैं और लघु कथाएं लिखते हैं. उनकी पांच लघुकथाएं आपके लिए.
चंद्रेश कुमार छतलानी : लघु कथाएं
मौसेरे भाई
एक राजनैतिक दल की बैठक में अध्यक्षता कर रहे मंत्री
का फोन घनघनाया. फोन करने वाले का नाम पढ़ते ही उसके चेहरे के हाव-भाव बदल गये. वह
मुंह बिगाड़ कर खड़ा हुआ और बैठक के सदस्यों को जल्दी लौटने का इशारा कर दरवाजे से
बाहर चला गया.
बाहर जाकर मंत्री ने फोन उठाया और कान से लगाकर कहा, “हैलो.”
सामने से आवाज़ आई, “नमस्कार
मंत्री जी.”
“नमस्कार...”
“मंत्री जी, आज
आपकी पार्टी के दूसरे मंत्री ने एक प्रेस कांफ्रेस में यह बयान दिया है कि हमारी
पार्टी की छानबीन में कोई कोताही नहीं बरतेंगे. आप कान खोल कर सुन लीजिये, अगर यह बात सच है तो हम भी वो सारे सबूत सार्वजनिक कर
देंगे, जिनसे आपकी और आपके साथियों की इज्जत तार-तार हो सकती
है.” दूसरी तरफ से आ रहा स्वर हर शब्द के साथ तीक्ष्ण होता
गया.
मंत्री यह सुनकर अचकचाया और अपने स्वर में बनावटी
प्रेम भर कर उत्तर दिया,
“आप मुझ पर विश्वास रखिये, जनता में तो बयान देना ही पड़ता है. आप स्वयं यह बात
समझते हैं, निश्चिंत रहिये आप भी बचे रहेंगे और हम भी.”
दूसरी तरफ का स्वर अब अपेक्षाकृत धीमा हुआ, “ठीक है, चुनावी
लाभ के लिए कुछ भी कहें. लेकिन यह न भूलें कि जब हम कुर्सी पर थे तो आपको ढक कर
रखा और अब आप हैं तो हम भी ढके रहें.”
मंत्री ने हामी भरते हुए फोन रख दिया. फोन रखते समय
उसकी निगाह सामने लटकी एक तस्वीर पर चली गयी, उस
तस्वीर में कुछ कुत्ते और बिल्लियाँ एक ही थाली में जीभ लपलपाते हुए खाना खा रहे
थे.
और वह अपने होंठों को साफ़ कर बैठक कक्ष में चला गया.
2)
उसकी ज़रूरत
उसके मन में चल रहा अंतर्द्वंद चेहरे पर सहज ही
परिलक्षित हो रहा था. वह अपनी पत्नी के बारे में सोच रहा था, “चार साल हो गए इसकी बीमारी को, अब तो दर्द का अहसास मुझे भी होने लगा है, इसकी हर चीख मेरे गले से निकली लगती है.“
और उसने मुट्ठी भींच कर दीवार पर दे मारी, लेकिन अगले ही क्षण हाथ खींच लिया. कुछ मिनटों पहले
ही पत्नी की आँख लगी थी,
वह उसे जगाना नहीं चाहता था.
वह वहीँ ज़मीन पर बैठ गया और फिर सोचने लगा, “सारे
इलाज कर लिये, बीमारी बढती जा रही है, क्यों
न इसे इस दर्द से हमेशा के लिए छुटकारा...? नहीं...
लेकिन...”
और उसने दिल कड़ा कर वह निर्णय ले ही लिया, जिस बारे में वह कुछ दिनों से सोच रहा था.
घर में कोई और नहीं था, वह
चुपचाप रसोई में गया,
पानी का गिलास भरा और अपनी
जेब से कुछ दिनों पहले खरीदी हुई ज़हर की पुड़िया निकाली. पुड़िया को देखते ही उसकी
आँखों में आंसू तैरने गये, लेकिन
दिल मज़बूत कर उसने पानी में ज़हर डाल दिया और एक चम्मच लेकर कांपते हाथों से उसे
घोलने लगा.
रसोई की खिड़की से बाहर कुछ बच्चे खेलते दिखाई दे रहे
थे, उनमें उसका पोता भी था, वह
उन्हें देखते हुए फिर पत्नी के बारे में सोचने लगा, “इसकी
सूरत अब कभी... इसके बिना मैं कैसे रहूँगा?”
तभी खेलते-खेलते एक बच्चा गिर गया और उस बच्चे के
मुंह से चीख निकली. चीख सुनते ही वह गिलास फैंक कर बाहर भागा, और पोते से पूछा, "क्या
हुआ बेटा?"
पोते ने उसे आश्चर्य से देखा, क्योंकि पोता तो गिरा ही नहीं था, अलबत्ता गिलास ज़रूर वाशबेसिन में गिर कर ज़हरीले पानी
को नाली में बहा चुका था.
और वह भी चैन की सांस लेकर अंदर लौट आया.
3)
मैं पानी हूँ
"क्या... समझ रखा है... मुझे? मर्द हूँ... इसलिए नीट पीता हूँ... मरद हूँ...
मुरद...आ"
ऐसे ही बड़बड़ाते हुए वह सो गया. रोज़ की तरह ही घरवालों
के समझाने के बावजूद भी वह बिना पानी मिलाये बहुत शराब पी गया था.
कुछ देर तक यूं ही पड़ा रहने के बाद वह उठा. नशे के
बावजूद वह स्वयं को बहुत हल्का महसूस कर रहा था, लेकिन
कमरे का दृश्य देखते ही अचरज से उसकी आँखें फ़ैल गयीं, उसके पलंग पर एक क्षीणकाय व्यक्ति लेटा हुआ तड़प रहा
था.
उसने उस व्यक्ति को गौर से देखा, उस व्यक्ति का चेहरा उसी के चेहरे जैसा था. वह घबरा
गया और उसने पूछा,
"कौन हो तुम?"
उस व्यक्ति ने तड़पते हुए कहा, "...पानी..."
और यह कहते ही उस व्यक्ति का शरीर निढाल हो गया. वह
व्यक्ति पानी था, लेकिन अब मिट्टी में बदल चुका था.
उसी समय कमरे में उसकी पत्नी, माँ और बच्चों ने प्रवेश किया और उस व्यक्ति को देख
कर रोने लगे. वह चिल्लाया, "क्यों
रो रहे हो?"
लेकिन उसकी आवाज़ उन तक नहीं पहुंच रही थी.
वह और घबरा गया, तभी
पीछे से किसी ने उसे धक्का दिया, वह उस
मृत शरीर के ऊपर गिर कर उसके अंदर चला गया. वहां अँधेरा था, उसे अपना सिर भारी लगने लगा और वह तेज़ प्यास से
व्याकुल हो उठा. वह चिल्लाया "पानी", लेकिन
बाहर उसकी आवाज़ नहीं जा पा रही थी.
उससे रहा नहीं गया और वह अपनी पूरी शक्ति के साथ
चिल्लाया,
"पा...आआ...नी"
चीखते ही वह जाग गया, उसने
स्वप्न देखा था, लेकिन उसका हलक सूख रहा था. उसने अपने चेहरे को
थपथपाया और पास रखी पानी की बोतल को उठा कर एक ही सांस में सारा पानी पी लिया.
और उसके पीछे रखी शराब की बोतल नीचे गिर गयी थी, जिसमें से शराब बह रही थी... बिना पानी की.
4)
डगमगाता वर्तमान
"सच कहूं तो ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे चार सौ मीटर के
ट्रैक पर तुम्हारे पैरों की ताल से संगीत सा बज रहा है, कितना तेज़ दौड़े हो! ओलम्पिक स्वर्ण की दौड़ और
तुम्हारी दौड़ में केवल पांच सेकंड का अन्तर रहा. तीन साल पहले यह तेज़ी थी तो अब
क्या न होगी! तुम बहुत आगे जाओगे."
मोबाइल फ़ोन पर वीडियो देखते हुए उसने बच्चों की तरह
किलकारी मारी और अपने धावक मित्र को गले लगा लिया.
मित्र लेकिन प्रसन्न नहीं था, उसने दुखी स्वर में उत्तर दिया, "दो साल यूनिवर्सिटी को जिताया, पिछले साल भी कांस्य पदक मिला, लेकिन इस बार टीम में मेरा चयन ही नहीं हुआ, आगे क्या ख़ाक जाऊँगा?"
"क्यों!" वह भौचंका रह गया.
"हर जगह पक्षपात है, दौड़ते
वक्त दो कदम लाइन से बाहर क्या चले गए तो पिछली सारी दौड़ भूल गए, कह दिया 'भाग
मिल्खा भाग' ."
"भाग मिल्खा...! यह तो फिल्म का नाम है, तो और क्या कहना चाहिये?" उसने जिज्ञासावश पूछा
थके हुए चेहरे पर सुस्त पड़ती आँखों से धावक मित्र ने
उसे देखा और फिर भर्राये हुए स्वर में कहा,
"काश! दौड़ मिल्खा दौड़ कहते."
5)
बैक टू बटालियन
सुनसान रात में लगभग तीन घंटे दौड़ने के बाद वह सैनिक
थक कर चूर हो गया था और वहीँ ज़मीन पर बैठ गया. कुछ देर बाद साँस संयत होने पर उसने
अपने कपड़ों में छिपाया हुआ मोबाईल फोन निकाला. उस पर नेटवर्क की दो रेखाएं देखते
ही उसकी आँखों में चमक आ गयी और बिना समय गंवाये उसने अपनी माँ को फोन लगाया.
मुश्किल से एक ही घंटी बजी होगी कि माँ ने फोन उठा लिया.
सैनिक ने हाँफते स्वर में कहा, “माँ मैं घर आ रहा हूँ.”
“अच्छा! तुझे छुट्टी मिल गयी? कब तक पहुंचेगा?” माँ ने
ख़ुश होकर प्रश्न दागे.
“छुट्टी नहीं मिली, मैं
बंकर छोड़ कर निकल आया हूँ.”
“क्यों?” माँ ने
आश्चर्यमिश्रित स्वर में पूछा.
“दुश्मनों ने कुछ सैनिकों के सिर काट दिए, उनके तड़पते शरीर को देखकर मेरी आत्मा तक कांप उठी...
इसलिए मैं...” कहते हुए वह सिहर उठा.
“सैनिकों के सिर काट दिये...!” उसकी माँ बिलखने लगी.
“हाँ, और मैं
वहां रहता तो मैं नहीं आता... मेरी सिरकटी लाश आती.” वह
कातर स्वर में बोला
उसकी माँ चुप रही, उसने
अपनी थकी हुई गर्दन घुमाई और फिर कहा, “ऐसी
हालत है कि कभी हाथ-पैरों को धोना भूल जाएँ तो वे गलने लगते है, बंकर में खड़े होने की जगह नहीं मिलती, पचास फीट नीचे जाकर बर्फ को गर्म कर पानी पीते हैं, हर समय दुश्मन के हथियारों की रेंज में रहते हैं...
और तिस पर ऐसी भयानक मौत के दृश्य!”
कुछ क्षणों तक चुप्पी छा गयी, फिर उसकी माँ ने गंभीर स्वर में कहा,
“सिर कटने की मौत, किसी
भगौड़े की झुके हुए सिर वाली जिंदगी से तो ज़्यादा भयानक नहीं है... तू मेरे घर में
ऐसे मत आना बेटा.”
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चंद्रेश कुमार
छतलानी
सहायक आचार्य
(कंप्यूटर विज्ञान)
जनार्दन राय नागर
राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय, उदयपुर (राजस्थान)
पता - 3 प 46, प्रभात नगर, सेक्टर - 5,
हिरण मगरी, उदयपुर (राजस्थान) - 313002
फोन - 99285 44749/ ई-मेल -chandresh.chhatlani@gmail.com
सुरम्य
जवाब देंहटाएंमेरे जीवन में पढ़ी गयीं श्रेष्ठ लघुकथाएं
जवाब देंहटाएंचंद्रेश जी की लघुकथाएं हमेशा ही स्ट्राइक कर जाती हैं... मैं पानी हूँ पहली बार पढ़ी... हिला दिया
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