काज़ुओ इशिगुरो : एक अभिनव किस्सागो : श्रीकांत दुबे






















2017 के नोबल पुरस्कार से सम्मानित 62 वर्षीय ब्रिटिश लेखक काज़ुओ इशिगुरो (Kazuo-Ishiguro) के 'द रिमेन्स ऑफ़ द डे' और 'नेवर लेट मी गो' पर आधारित दो फिल्में भी बनी हैं. उनकी कृतियों का 40 से अधिक  भाषाओं में अनुवाद हुआ है.  1989 में उन्हें 'द रिमेन्स ऑफ द डे' के लिए बुकर पुरस्कार भी दिया गया था.

उनकी कृतियों और उनकी कथा शैली की चर्चा कर रहे हैं युवा कथाकार श्रीकांत दुबे.


काज़ुओ इशिगुरो : एक अभिनव किस्‍सागो                               

श्रीकांत दुबे




(1982)




रेक सफल गद्यकार मूलत: कवि होता है. लेकिन हरेक गद्यकार कविता-कर्म भी करे, यह अनिवार्य नहीं. रचे हुए गद्य के स्‍वभाव का निर्धारण रचनाकार के भीतर के कवि की प्रवृत्ति से होता है. भीतर के कवि को प्रत्‍यक्ष रूप से अभिव्‍यक्‍त होने देने से कविता बनती चली जाती है, लेकिन उसका उपयोग एक प्रेरक साधन के तौर पर करने से रचनाकार का गद्य अभिनव होता चला जाता है. इस तरह से रचा हुआ गद्य एक मकान की तरह होता है. कथ्‍य, पात्र तथा घटनाएं उसमें रहने वाले सदस्‍यों तथा दैनंदिन की जरूरी चीजों के रूप में समायोजित हो उसे घर बना देते हैं. एक आगंतुक के रूप में वह घर आप(पाठक) को कितना आकर्षित करेगा, यह उसका निर्माण करने वाले (लेखक) के भीतर प्रवाहमान कविता से तय होता है. वर्ष 2017 के लिए साहित्‍य का नोबेल पाने वाले जापानी मूल के अंग्रेजी लेखक काज़ुओ इशिगुरो के बनाए ज्‍यादातर घर, मुझे ही नहीं बल्कि दुनिया के करोड़ों आगंतुकों (पाठकों) को, ऐसे ही अपनी ओर खींचते रहे हैं. दीगर है कि काज़ुओ इशिगुरो ने कभी कविता नहीं लिखी.

(1986)
किसी लेखक या कलाकार को पुरस्‍कार मिलने के आधार क्‍या होते हैं, स्‍थानीय या फिर अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर पुरस्‍कारों की नीति-राजनीति क्‍या होती है, इन चीजों से मैं अकिंचन अनजान ही हूँ. यूँ ऐसे किसी खेल की बारीकियां जानने में मेरी दिलचस्‍पी भी नहीं. हर वर्ष सितंबर-अक्‍तूबर में घोषित होने वाले विभिन्‍न क्षेत्रों के नोबेल पुरस्‍कार, सं‍बंधित क्षेत्रों में होने वाले नए अन्‍वेषणों तथा कुछ जुनूनी लोगों के नाम मेरे सामने लाकर रख देते हैं. ऑस्‍कर पुरस्‍कारों की घोषणा होने पर भी मेरे साथ ऐसा ही होता है जब अनेक वर्गों को मिलाकर फिल्‍मों की एक ठीक-ठाक फेहरिश्‍त मुझे देखे जाने के लिए मिल जाती है. कुछेक अपवादों को छोड़ दें, तो इन पुरस्‍कारों की घोषणा ने लगभग हर बार मेरे भीतर सुखद कौतूहल का ही संचार किया है. लेकिन इस वर्ष के साहित्‍य के नोबेल का मामला इन सबसे हटकर रहा, क्‍योंकि इसे पाने वाले लेखक की अधिकतम रचनाओं को मैं पहले ही से पढ़ रखा था. आगे इस विषय पर मैं जो भी कहने जा रहा हूँ, वह विश्‍व साहित्‍य के महासागर की चंद लहरों मात्र से परिचित एक पाठक मात्र का कहा हुआ माना जाय.

(1989)


काज़ुओ इशिगुरो का जन्‍म जापान के नागासाकी में सन् 1954 में, नागासाकी पर अमेरिका द्वारा किए परमाणु हमले के नौ वर्ष बाद हुआ. लेकिन अपने समुद्र विज्ञानी पिता को मिलने वाली एक शोध परियोजना के चलते महज पांच वर्ष की आयु में उन्‍हें जापान छोड़कर इंग्‍लैंड चले जाना पड़ा. उनकी शेष शिक्षा इंग्‍लैंड में ही पूरी हुई जहां वे अंग्रेजी तथा दर्शन में स्‍नातक एवं रचनात्‍मक लेखन में परास्‍नातक की उपाधि अर्जित किए. इशिगुरो परिवार का सपरिवार इंग्‍लैंड आना आरंभ में अल्‍पकालिक प्रवास की योजना के तहत हुआ, लेकिन आगे चलकर वापस जापान जाने की योजना बार-बार मुल्‍तवी होती गई. अपनी जापानी संस्‍कृति से प्‍यार के सिवाय इस द्विविधा के चलते भी पिता शिजुओ इशिगुरो ने बच्‍चों को जापानी भाषा तथा परंपरा वाली परवरिश देने में कोई कोताही नहीं की. यूं काज़ुओ इशिगुरो सन् 1989 तक भौतिक रूप में जापान को नहीं देख पाए, लेकिन मां-पिता के साहचर्य के चलते उनकी कल्‍पनाओं में रचे-बसे जापान से उनका जुड़ाव कतई कमतर नहीं रहा. यही वजह थी कि काज़ुओ इशिगुरो के शुरूआती दो उपन्‍यासों का वितान उनकी कल्‍पनाओं वाले जापान में ही विकसित हुआ.

अपने वैज्ञानिक पिता की वृत्ति से दूर, काफी कम उम्र में ही इशिगुरो की अभिरुचि साहित्‍य लेखन की ओर मुड़ गई. इसी का नतीजा था कि ‘रचनात्‍मक लेखन’ में परास्‍नातक की उपाधि के लिए तैयार किया गया प्रबंध-कार्य (थीसिस) ही उनके पहले उपन्‍यास ‘अ पेल व्‍यू ऑफ हिल्‍स’ के रूप में सन् 1982 में प्रकाशित हुआ और पाठकों द्वारा सराहा गया. उस वक्‍त इशिगुरो की उम्र मात्र 28 वर्ष थी.

(1995)
इशिगुरो के अब तक के अंतिम उपन्‍यास ‘द बरीड जाइंट’ को अपवाद मानें तो उनके शेष सभी उपन्‍यासों का कथावाचक उत्‍तम पुरुष (‘मैं’) होता है. इशिगुरो के शुरुआती तीन उपन्‍यासों में स्‍मृति को मूल विषय बनाया गया है. पहले उपन्‍यास ‘अ पेल व्‍यू ऑफ हिल्‍स’ में वर्तमान तथा अतीत की स्‍मृतियों के जरिए पश्‍चाताप तथा अपराधबोध की जटिल एक जटिल दुनिया रची गई है. उपन्‍यास की कथा इंग्‍लैंड में बसी जापानी मूल की महिला इत्‍सुको द्वारा अपनी बेटी निकि से संवाद के साथ शुरू होती है, जो आत्‍महत्‍या कर चुकी अपनी दूसरी बेटी को याद करती रहती है.

इशिगुरो का दूसरा उपन्‍यास सन् 1986 में ‘ऐन आर्टिस्‍ट ऑफ द फ्लोटिंग वर्ल्‍ड’ नाम से प्रकाशित हुआ. यह उपन्‍यास भी, पुन:, एक बुजुर्ग चित्रकार की स्‍मृति के सहारे द्वितीय विश्‍व युद्ध के दौर में जाकर युद्ध में उसके द्वारा खुद की भूमिका के औचित्‍य स्‍थापित करने के प्रयास का बयान करता है, जिसे लेकर उसकी भावी पीढ़ी कतई नाखुश है. अपने इस दूसरे ही उपन्‍यास में इशिगुरो ने बतौर लेखक वह परिपक्‍वता अर्जित कर ली, कि उनकी इस किताब को मैन बुकर पुरस्‍कार के लिए शार्टलिस्‍ट किया गया.

(2000)
सन् 1989 में उनके तीसरे उपन्‍यास ‘द रिमेंस ऑफ द डे’ के प्रकाशन ने इशिगुरो को वैश्विक फलक पर एक अनिवार्य कथा लेखक के तौर पर स्‍थापित कर दिया. इस पुस्‍तक के लिए उन्‍हें मूलत: अंग्रेजी में लिखित तथा इंग्‍लैंड से प्रकाशित उस वर्ष की सर्वश्रेष्‍ठ किताब को मिलने वाले मैन बुकर पुरस्‍कार से नवाजा गया. ‘द रिमेंस ऑफ द डे’ लंबे वक्‍त तक व्‍यापक जिम्‍मेदारियों का बोझ लिए रहने वाले एक नौकर के दायित्‍वों तथा इच्‍छाओं के, हासिल तथा अप्राप्‍त के अंतर्विरोधों की दास्‍तान है. इशिगुरो का अगला उपन्‍यास सन् 1995 में ‘दि अनडिस्‍क्‍लोज्‍ड’ नाम से प्रकाशित हुआ. यह राइडर नामक एक क्‍लासिकल पियानो वादक की कथा है जो स्‍मृतिलोप से जूझता हुआ अपनी पहचान की तलाश करता फिर रहा है. उनका पांचवां उपन्‍यास पुन: पांच वर्षों के अंतराल पर सन् 2000 में ‘ह्वेन वी वर ऑर्फन्‍स’ के नाम से हुआ. यहां इशिगुरो द्वारा फिर से एक बार स्‍मृति के आधार पर पूरी कथा की संरचना की गई दिखाई देती है, जिसमें पेशे से जासूस रहा कथावाचक क्रिस्‍टोफर अपने ही अतीत में घुसकर अपने मां-पिता की गुमशुदगी की गुत्‍थी सुलझाता है. हालांकि इशिगुरो की इस किताब को भी वर्ष 2000 के मैन बुकर पुरस्‍कार के लिए शार्टलिस्‍ट किया गया था, लेकिन समीक्षकों के बीच इसे उनकी अन्‍य पुस्‍तकों से कमतर ही माना गया, जिसकी तस्‍दीक खुद काज़ुओ इशिगुरो ने भी की थी.

(2005)
पुन: पांच ही वर्ष के अंतराल पर इशिगुरो की छठी पुस्‍तक ‘नेवर लेट मी गो’ का प्रकाशन हुआ. वैश्विक स्‍तर पर पाठकों-समीक्षकों के बीच इस पुस्‍तक को उनकी श्रेष्‍ठतम रचना के रूप में स्‍वीकृति मिली. यही कारण है कि वर्ष 2010 में इस पुस्‍तक को आधार बना इसी नाम से एक फिल्‍म भी बनी. यह उपन्‍यास सरकार द्वारा संचालित एक योजना के तहत क्‍लोनिंग के माध्‍यम से बच्‍चों को पैदाकर उनका इस्‍तेमाल रसूखदार और पूंजीपतियों के लिए अंगदान करने वालों के रूप में किए जाने की काल्‍पनिक थीम पर डेवेलप किया हुआ है. यह उपन्‍यास जिन भावनात्‍मक अंतर्विरोधों को उजागर करता है, वे इस बात का प्रमाण बनते हैं कि सभ्‍यता तथाकथित विकास के साथ-साथ सहारे किस प्रकार मनुष्‍य के भीतर ढेर सारी अ-मनुष्‍यता घर करती जा रही है.
(2015)




औपन्‍यासिक रचना के रूप में अब तक की उनकी अंतिम किताब ‘द बरीड जाइंट’ है जिसका प्रकाशन सन् 2015 में हुआ गया. इस उपन्‍यास में लेखक पुन: एक बार गल्‍प की रचना के लिए अतीत की यात्रा करता है. लंबे अतीत, यानी हजार वर्ष से भी अधिक पुराने यूरोप की कथाभूमि पर दो विरोधी समुदायों के बीच के संघर्ष, शांति तथा पुन: संघर्ष कहानी. संघर्ष और संघर्ष के बीच की शांति किसी कारण से दोनों समुदायों के लोगों की स्‍मृति का लोप होता है. उस स्‍मृति के वापस आते ही पुन: उनके बीच का संघर्ष शुरू हो जाता है.

इशिगुरो के इस उपन्‍यास को उनकी पुरानी किसी भी रचना की तुलना में अधिक लोकप्रियता मिली, लेकिन उनके गंभीर पाठक-समीक्षक लगभग इसी अनुपात में उनसे निराश भी हुए, क्‍योंकि, खासतौर पर यूरोप के, समकालीन फिक्‍शन लेखन में प्रतीक के सहारे कथा-रचना को एक पुराना हथियार माना जाने लगा है.

(2009)


औपन्‍यासिक विधान के साथ-साथ काज़ुओ इशिगुरो समय-समय पर कहानियां भी लिखते रहे, लेकिन एक ही संकलन में पुस्‍तकाकार पांच कहानियों का उनका पहला संग्रह सन् 2009 में ‘नॉक्‍टर्न्स’ टाइटल से प्रकाशित हुआ. इन कहानियों में परिवेश से साथ-साथ कथावस्‍तु और किरदारों तक के तार एक दूसरे से इस कदर जुड़ते चले जाते हैं कि प्रकाशक ने इस पुस्‍तक को ‘स्‍टोरी सायकल’ (कथा-चक्र) की संज्ञा दे दी. चक्र इस तरह, कि पहली कहानी ‘क्रूनर’ के पात्र अंतिम कहानी ‘सेलिस्‍ट्स’ में दुबारा सामने आ पड़ते हैं. क्रूनर एक प्रसिद्ध अमेरिकी संगीतकार की कहानी है जो वेनिस आकर अपने 27 वर्षों के वैवाहिक जीवन के विच्‍छेद की पूर्वसंध्‍या पर अपनी पत्‍नी की खिड़की के नीचे प्रेमगीत (सेरनेड) गाता है. यह सेरनेड विवाह-विच्‍छेद से पहले गाया जाता है, यह बात कथा के अंत में खुलती है. ऐसे ही शेष चारों कथाओं की पृष्‍ठभूमि में संगीत होता है. नाक्‍टर्न्स संग्रह को उसके पूरेपन में एक उपन्‍यास की तरह भी पढ़ा जा सकता है. उपन्‍यास तथा कहानी की विधाओं के साथ-साथ काज़ुओ इशिगुरो ने कुछ फिल्‍मों के लिए स्‍क्रीन प्‍ले तथा गीत भी लिखे हैं.


काज़ुओ इशिगुरो की लगभग सभी पुस्‍तकों में जो एक चीज सबसे अधिक उल्‍लेखनीय रही है, वह किसी भी कथावाचक द्वारा बरती गई ईमानदारी है, जो अपनी कमियों तथा ग़लतियों को भी उतने ही स्‍पष्‍ट और विस्‍तृत तरीके से बयां करता है, जैसे किसी भी अन्‍य बात को करता हो. 

इशिगुरो का रचना कर्म अभी भी बदस्‍तूर जारी है और बतौर पाठक हम उम्‍मीद कर सकते हैं नोबेल पुरस्‍कार उनके इस सिलसिले का पटाक्षेप नहीं साबित होगा तथा वे गाब्रिएल गार्सिया मार्केस अथवा जेईएम कोएट्जी जैसे दिग्‍गज लेखकों की ही मानिंद नोबेल से नवाजे जाने के बावजूद लेखन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता से च्‍युत न होकर हम पाठकों को समय-समय पर चौंकाते रहेंगे. उन्‍हें शुभकामनाएं.


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श्रीकांत दुबे
(१ जनवरी १९८८, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश)

कहानी संग्रह : पूर्वज
कविताएँ प्रकाशित
गजानन माधव मुक्तिबोध युवा कविता सम्मान
ई-मेल- shrikant.gkp@gmail.com

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  1. अद्भुत है भाई समालोचन. इतना सुंदर सुरुचिपूर्ण वेब पर कोई पत्रिका मैंने नहीं देखी है. जिस तरह से इयर वाइज़ आपने किताबें दी हैं कमाल है. श्रीकांत दुबे ने बहुत सहजता से काज़ुओ इशिगुरो पर लिखा है. समालोचन हिंदी की थाती है. मैं आपको क्या बधाई दूँ.

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  2. बहुत ही बढ़िया,आप को और श्रीकांत भाई को बधाई. समालोचन का यह काम बेहतरीन और बेहद खूबसूरत है.

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  3. बहुत प्रासंगिक आलेख समालोचन द्वारा ऐसे समय दिया गया है जभूम सबमें इशिगुरो को लेकर उत्कंठा और अनभिज्ञता है।श्रीकांत दुबे ने संक्षेप में उनके कृतित्व को समेट लिया।ये भी लगा कि हिंदी लेखन कई दशक पहले स्मृतिजीवी रचना छोड़ चुके है।हम सब एक कदम आगे वर्तमान समय और परिवेश के धचकों से जूझते हैं।

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  4. अद्भुत। इतना अच्छा कि कोई हर रचना पढ़ना चाहे।

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  5. बहुत सारगर्भित अनूठी चीजें मिलती हैं पढने को समलोचन में

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  6. लेखक से निवेदन है कि वो इशिगुरो की किसी रचना के हिंदी अनुवाद का अंश शेयर करने का कष्ट करें.इस टिप्पणी से कोई बात साफ नहीं होती.

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